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________________ १४-स्फोट व्याकरण के दार्शनिक ग्रन्थकार ४३१ १-भाषा की उत्पत्ति ११-समास-शक्ति २-शब्द की अभिव्यक्ति १२-शब्द-शक्ति ३-शब्द के दो रूप-स्फोट और ध्वनि १३-निपावार्थः । ४-अपभ्रंश के कारण ५-पद-मीमांसा . .. ... १५-क्रिया.... ६-वाक्य-मीमांसा १६-काल ७-धात्वर्थ १७-लिङ्ग ८-लकारार्थ १८-संख्या ६-प्रातिपदिकार्थ १९-उपग्रह १०-सुबर्थ सम्प्रति व्याकरणशास्त्र-सम्बन्धी जो दार्शनिक ग्रन्थ उपलब्ध हैं, उनमें अधिक संख्या स्फोट-विषय ग्रन्थों की ही है। १-स्फोटायन (३१०० वि० पू०) स्फोटायन प्राचार्य का उल्लेख पाणिनि ने प्रवङ् स्फोटायनस्य (६।१।१२३) सूत्र में साक्षात् रूप से किया है। पदमञ्जरीकार हरदत्त ने काशिका ६।१।१२३ की टीका में - स्फोटायन शब्द की व्याख्या इस प्रकार की है_ 'स्फोटोऽयनं परायणं यस्य स स्फोटायनः स्फोटप्रतिपादनपरो वैयाकरणाचार्यः । ये स्वीकारं पठन्ति ते नडादिषु प्रश्वादिषु वा (स्फोटशब्दस्य) पाठं मन्यन्ते।' — इस व्याख्या के अनुसार प्रथम पक्ष में स्फोटायन आचार्य वैयाकरणों के स्फोट तत्त्व का प्रथम उपज्ञाता प्रतीत होता है । इस पक्ष में इस प्राचार्य का वास्तविक नाम अज्ञात है। द्वितीय पक्ष में (सूत्र में 'स्फौटायनस्य' पाठ मानने पर) इसके पूर्वज का नाम स्फोट था। यह नाम भी स्फोट-तत्त्व-उपज्ञाता होने से प्रसिद्ध हुआ होगा। २५ इस प्राचार्य के काल आदि के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग पष्ठ १८६-१९१ (च० सं०) पर निर्देश कर चुके हैं। वहां हमने पाणिनीय तन्त्र (६।१।१२३) में स्फोटायन का उल्लेख होने से २६५० वि० पूर्व काल सामान्यरूप से लिखा है। यदि उसी प्रकरण में दर्शायी गयी रफोटायन और प्रौदुम्बरायण की एकता को सम्भावना ३०
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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