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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
१७- अक्षरतन्त्र- प्रवक्ता
सामवेद से सम्बन्ध रखने वाला अक्षरतन्त्र नामक एक लघुकाय ग्रन्थ उपलब्ध होता है । इसका प्रकाशन पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने चिरकाल पूर्व किया था । यह ग्रन्थ एकमात्र खण्डित हस्तलेख के आधार पर छपा है ।
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अक्षरतन्त्र का प्रवक्ता - अक्षरतन्त्र के प्रकाशक पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने इसकी भूमिका में लिखा है
'ग्रन्थोऽयं ऋक्तन्त्रप्रणेतुः शाकटायनस्य समकालिकेन महामुनिना भगवता प्रापिशलिना प्रोक्तः ।' भूमिका पृष्ठ २ ।
अर्थात् - अक्षरतन्त्र का प्रवचन ऋक्तन्त्र प्रवक्ता शाकटायन के समकालिक महामुनि प्रापिशलि ने किया है ।
ऐसा ही उल्लेख पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने निरुक्तालोचन पृष्ठ ११५ पर भी किया है ।
अक्षरतन्त्र का विषय - अक्षरतन्त्र में सामगानों में प्रयुज्यमान १५ स्तोम आदि का निर्देश किया है। पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने सामतन्त्र से अक्षरतन्त्र के विषय का भेद बताते हुए लिखा है
“सामतन्त्रे खलु साम्नां योनिगता एवाक्षरविकारविश्लेषविकर्षणाभ्यासविरामादयश्चिन्तिताः । इह तु साम्नां स्तोभगताः पातास्वरादयो वान्तपर्वादयश्च बोधिता इति भेदः । अक्षरतन्त्र की २० भूमिका पृष्ठ १ ।
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१ - वृत्तिकार
पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने अक्षरतन्त्र पर एक वृत्ति भी प्रकाशित की है। इसके विषय में सामश्रमी जी ने लिखा है
'वृत्तिरनतिप्राचीनाऽपि लेखकप्रमादादित एवाद्यन्तदुष्टा दृश्यते " तामेव संस्कर्तु मयमारम्भः
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इस वृत्ति के प्राद्यन्तहीन होने से इसके लेखक आदि का कुछ ज्ञान नहीं होता ।