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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता
४२७ इस विषय में मतभेद है । हरदत्त ने स्वीय सामवेदीय सर्वानुक्रमणी में 'सामतन्त्र का प्रवक्ता प्राचार्य प्रौदवजि है' ऐसा लिखा है
सामतन्त्रं प्रवक्ष्यामि सुखार्थ सामवेदिनाम्
प्रौदवजिकृतं सूक्ष्म सामगानां सुखावहम् ।' ___ प्राचार्य प्रौदवजि के विषय में ऋक्तन्त्र के प्रकरण में लिखा चके ५ हैं । पं० सत्यव्रत सामश्रमी ने अक्षरतन्त्र की भूमिका में लिखा है कि सामतन्त्र का प्रवचन आचार्य गार्य ने किया है, ऐसी अनुश्रुति है
'सामतन्त्रं तु गाणेति वयमुपदिष्टाः प्रामाणिकैः ।' पृष्ठ २।
हमारे विचार में पं० सत्यव्रत सामश्रमी की अपेक्षा हरदत का कथन अधिक प्रामाणिक है ।
विषय-सामतन्त्र में सामगानों की योनिभूत ऋचाओं में होने वाले अक्षरविकार-विश्लेष-विकर्षण-अभ्यास-विराम आदि कार्यों का विधान किया है।
भाष्यकार-भट्ट उपाध्याय हरदत्त ने सामवेदीय सर्वानुक्रमणी में सामतन्त्र का निर्देश करके १५ अन्त में लिखा है'भाष्यकारं भट्टपूर्वमुपाध्यायमहं सदा।' ..
अर्थात्-सामतन्त्र का भाष्य किसी भट्ट उपाध्याय ने किया था। इस के विषय से हमें और कुछ भी ज्ञात नहीं।
हरदत्त ने फुल्लसूत्र और उसके भाष्यकार का उल्लेख करके २० लिखा है
'सामतन्त्रस्य यद् भाष्यमयमेव चिन्तितम् ।'
इस पंक्ति का पाठ भ्रष्ट होने से इसका अभिप्राय अज्ञात है। पाठशुद्धि के अनन्तर इसका वास्तविक अभिप्राय ज्ञात हो सकता है। उक्त भ्रष्ट पाठ से दो बातें सूचित हो सकती हैं।
१-सामतन्त्र का भाष्य अनेनैव (पाठ मानकर) अर्थात् रामकृष्ण दीक्षित ने बनाया।
२-सामतन्त्र का भाष्य मयैव (पाठ मानकर) मैंने ही बनाया।