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________________ ५ ४२६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास विवृत्तिकार की शाखा-विवृत्तिकार ने पूर्ण संख्या ५८ सूत्र की व्याख्या करते हुए लिखा है 'तेस्तकारात् परोऽनुदात्तोऽकार उदात्तमापद्यते । अस्माकं पाठः स्वरितः। तोऽधस्तेम् ॥ इस उद्धरण से प्रतीत होता है कि विवृत्तिकार की शाखा राणायनीय शाखा से भिन्न थी। (३) अज्ञातनाम व्याख्याता पूर्ण संख्या ५ की पूर्वनिर्दिष्ट विवृत्ति में लिखा हैऋक्तन्त्रकारतद्व्याख्यातृभिः स्वरितस्योच्चनीचव्यतिरेकेण".' यहां पर बहुवचन निर्देश से व्यक्त होता है कि विवृत्तिकार की दृष्टि में ऋक्तन्त्र की कोई अन्य वृत्ति भी थी। उसी को दृष्टि में रखकर उसने बहुवचन का प्रयोग किया है। १५-लघु-ऋक्तन्त्रकार ऋक्तन्त्र के अाधार पर एक लघु-ऋक्तन्त्र का प्रवचन भी किसी १५ प्राचार्य ने किया था। इसके प्रवक्ता का नाम अज्ञात है। लघुऋक्तन्त्र (मुद्रित) पृष्ठ ४६ पर पाणिनि को नामोल्लेखपूर्वक स्मरण किया गया है । अतः ऋवतन्त्र का प्रवचन पाणिनि से उत्तरवर्ती है, यह स्पष्ट है। हरदत्तीय सामसर्वानुक्रमणी का एक पाठ है'नगाख्यं लघुऋक्तन्त्रञ्चन्द्रिकाख्यं स्वरस्य तु।' यह पाठ विवेचनीय है। १६-सामतन्त्र-प्रवक्ता सामवेद से सम्बन्ध रखने वाला एक सामतन्त्र नामक प्राचीन ग्रन्थ उपलब्ध होता है । यह छप चुका है। सामतन्त्र का प्रवक्ता- सामतन्त्र का प्रवक्ता कौन आचार्य है, २५
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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