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२/५४ प्रातिशाख्य प्रादि के प्रवक्ता और व्याख्यागा ४२५
१-नकुलमुखःतद्वच्चैवाचार्यस्य नकुलमुखस्य वचनं श्रूयते- ..
"प्रक्रमते मकारकरणेन ततो हकारादिमनुस्वारं गायति ततो मकार इति नकुलमुखः ।' पूर्ण सूत्र-संख्या ६०. ..
२-ऐतिकायन:- ३-नैगिः । - ५ 'षट्स्वैतिकायनः, प्रकृत्या नैगिः।' पूर्ण सूत्र-संख्या १८८ । ४-जालकाक ? जानकक ?-..
जालकाकेन - (जानककेन-पाठा०) गरणीषु च मत्स्यकामानाहननांसकस्य विदिशानि सामकम् । पूर्ण सूत्र-संख्या ३८ ।
तुलनो करो-हरदत्तविरचित सामसर्वानुक्रमणी'कर्णसूत्रं जालाननं स्मृतम् ।'
यहां 'जालानन' पाठ है । इन तीनों पाठों की पाठशुद्धि विचारणीय है।
५–'कटाहपतनीयकपिलोलान्तानां गुरुलघुतुल्यानामिति वाच्यम्।' पूर्ण सूत्र-संख्या २२६ ।
इस पाठ में किसी अज्ञातनामा प्राचार्य का वचन उद्धृत किया है।
इन उद्धरणों से स्पष्ट है कि यह वृत्ति किसी प्राचीन ग्रन्थकार की लिखी हुई है।
विवृत्तिकार ... . ऋक्तन्त्र की उक्त वृत्ति पर एक विवृत्ति भी है। इसका उप- २० योगी अंश डा० सूर्यकान्त जी ने स्वसंपादित ऋक्तन्त्र के अन्त में , छापा है। इस विवृत्तिकार के भी नाम देश काल आदि का कुछ परिचय नहीं मिलता।
१. नैगि प्राचार्य का उल्लेख मूल ऋक्तन्त्र के 'नैगिनोभयथा' (पूर्ण संख्या ५६) में भी मिलती है।
.. . २५ २. यह पाठ ऋक्तन्त्र के पञ्चम प्रपाठक के प्रथम सूत्र की ओर संकेत करता है। ..