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________________ प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ४२१ प्रौदवजिरप्यसूत्रयत्-अनन्त्या त्यसंयोगे मध्ये यमः पूर्वस्य गुण इति । पृष्ठ १४३। श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा की पञ्जिका' नाम्नी व्याख्या' का अज्ञातनामा लेखक लिखता है २-अनन्त्यान्त्यसंयोगे मध्ये यमः पूर्वगुण इत्योदवजिः । पृ०१०। ५ ३-तथा चौरवजिः-तत्र स्पृष्टं प्रयतनं करणं स्पर्शानाम्, दुःस्पृष्टमन्तःस्थानाम् इति । पृष्ठ ११ ।। ४-तथा चौदवजिः-अनुस्वारावं आं इत्यनुस्वरौ, ह्रस्वाद् दीर्घो दीर्घाद्धस्वो वौ इति । पृष्ठ १२ । ५-द्वौ नादानुप्रदानौ इत्यौदवजिः । पृष्ठ १४, १६ । १० ६-निमेषः कालमात्रा स्याद् इत्यौदवजिः। पृष्ठ (?)। . ७-प्रौदवजिरपि-स्पर्शे वर्गस्य स्पर्शग्रहणे च ज्ञेयं वर्गस्य ग्रहणं स्थानेष्वित्यधिकार इति । पृष्ठ १७ । . ८-तथा च प्रौदवजिः-प्रयोगवाहाः प्रः इति विसर्जनीयः, कः इति जिह्वामूलीयः, पः इत्युपध्मानीयः,अं इत्यनुस्वारः नासिक्य इति। १५ पृष्ठ १८ । ___ श्लोकात्मक पाणिनीय शिक्षा की 'प्रकाश' व्याख्या' का अज्ञातनामा लेखक भी लिखता है ६-अनन्तसंयोगे मध्ये यमः पूर्वगण इत्यौदवजिरपि । पृ० २६ । . इन उद्धरणों में से कतिपय सर्वथा अभिन्नरूप से, कतिपय स्वल्प २० भेद से ऋक्तन्त्र में उपलब्ध होते हैं, और कतिपय नहीं भी मिलते। । यथा। संख्या १,२ तथा ६ का उद्धरण ऋक्तन्त्र प्रपाठक १ खण्ड २ के अन्त में मिलता है। संख्या १ तथा ६ का पाठ कुछ भ्रष्ट हैं । पाणि १. आगे इस व्याख्या की निर्दिष्ट पृष्ठसंख्या मनोमोहन घोष द्वारा २५ सम्पादित तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय द्वारा सन् १९३८ में प्रकाशित संस्कणर के अनुसार है। २. इसकी पृष्ठसंख्या भी पूर्वनिर्दिष्ट संस्करण के अनुसार दी है।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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