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४२० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
इसके काल आदि के विषय में वाजसनेय प्रातिशाख्य के व्याख्याकार प्रकरण में लिख चुके हैं।
१४-ऋक्तन्त्र
सामवेदीय ग्रन्थों में ऋतन्त्र नाम का एक ग्रन्थ प्रसिद्ध है । इस में सामवेद की किसी विशिष्ट-शाखा के स्वर सन्धि आदि नियमों का विधान मिलता है।
प्रवक्ता-ऋक्तन्त्र का प्रवक्ता कौन प्राचार्य है, इस विषय में प्राचीन ग्रन्थकारों में मतभेद है। कुछ ग्रन्थकार ऋक्तन्त्र का प्रवक्ता १० शाकटायन को मानते हैं, और कुछ औदवजि को । यथा
शाकटायन-नागेशभट्ट लघुशब्देन्दुशेखर के प्रारम्भ में लिखता
१-ऋक्तन्त्रव्याकरणे शाकटायनोऽपि–इदमक्षरं छन्दो.. .... ।
भाग, १ पृष्ठ ७। १५ किसी हरदत्त नामक व्यक्ति की एक साम-सर्वानुक्रमणी मिलती
है। इसे डा० सूर्यकान्त जी ने अपने ऋक्तन्त्र के संस्करण के अन्त में छपवाया है । उसमें लिखा है२-ऋचां तन्त्रव्याकरणे पञ्चसंख्याप्रपाठकम् ।
शाकटायनदेवेन द्वात्रिंशद् खण्डकाः स्मृताः ॥ पृष्ठ ३ । २० ३-ऋक्तन्त्र के अन्त में पाठ मिलता है
इति शाकटायनोक्तमृक्तन्त्रव्याकरणं सम्पूर्णम् । ४-इसी प्रकार ऋवतन्त्रवृत्ति के अन्त में पाठ मिलता है'छन्दोगशाखायामृक्तन्त्राभिधानव्याकरणवृत्तिः समाप्ता। ऋक्तन्त्रव्याकरणं शाकटायनादिभिः कृतम् । सूत्राणां संख्या २८० अशीत्य२५ धिकशतद्वयं सूत्राणि ।'
प्रौदवजि-भट्टोजि दीक्षित ने शब्दकौस्तुभ ('मुखनासिका' सूत्र) में लिखा है
१-तथा च ऋक्तन्त्रव्याकरणस्य छान्दोग्यलक्षणस्य प्रणेता