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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ४१५ सरस्वतीभवन के संग्रह में भी है । इसकी संख्या २०८६ है। इसके प्रथमाध्याय के प्रथम पाद के अन्त में निम्न पाठ है'इत्यथर्ववेदे कौत्सव्याकरणे चतुरध्यायिकायां प्रथमः पादः'
हमारे विचार में शौकनीय चतरध्यायी का प्रवक्ता कौत्स है। और अथर्ववेद की शौनक शाखा से इसका सम्बन्ध होने से यह शौन- ५ कीया विशेषण से विशेषित होती है। .
काल-भारतीय वाङ्मय में कौत्स नाम के अनेक प्राचार्य हो चुके हैं। एक कौत्स वरतन्तु का शिष्य था। इसका उल्लेख रघुवंश ५।१ में मिलता है। एक कौत्स निरुक्त १११५ में स्मृत है। महाभाष्य ३।२।१०८ में किसी कौत्स को पाणिनि का शिष्य कहा है। गोभिल- १० गृह्यसूत्र ३।१०।४; आपस्तंब धर्मसूत्र १।१९।४; २।२८।१; आयुर्वेदीय कश्यपसंहिता (पृष्ठ ११५); और सामवेदीय निदानसूत्र २। १।१०; ३।११; ८।१० आदि में भी कौत्स का निर्देश मिलता है । इनमें से चतुरध्यायिका का प्रवक्ता कौनसा कौत्स है, यह कहना अभी कठिन है। .. कौत्स का स्मार्तवचन-कौत्स का एक स्मार्त वचन चतुर्वर्ग चिंतामणि परिशेष खण्ड कालनिर्णय पृष्ठ २५१ पर निर्दिष्ट है। ___ अथर्वचतुरध्यायी अथर्वपार्षद से पूर्ववर्ती है, यह डा० सूर्यकान्त का मत है, यह हम पूर्व लिख चुके है।
१२-प्रतिज्ञासूत्रकार शुक्ल यजुः सम्प्रदाय में प्रतिज्ञासूत्र नाम के दो ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। एक का सम्बन्ध कात्यायन प्रातिशाख्य के साथ है, और दूसरे का कात्यायन श्रौत के साथ । कात्यायन प्रातिशाख्य तथा श्रौत दोनों से सम्बद्ध परिशिष्टों का रचयिता भी कात्यायन ही माना जाता है । यह परम्परा कहां तक प्रामाणिक है, यह हम नहीं जानते। अन्यकृत २५ होने पर भी कात्यायनीय ग्रन्थों से सम्बन्ध होने के कारण इनका कात्यायन परिशिष्ट के नाम से व्यवहार हो सकता है। यदि परिशिष्ट प्रातिशाख्य और श्रौतसूत्र प्रवक्ता प्राचार्य कात्यायन के ही हों, तो इनका काल विक्रम से ३००० वर्ष पूर्व होगा।