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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता
इससे स्पष्ट है कि अजातशत्रु से पूर्व पुष्पसूत्र पर किसी अज्ञात - नामा विद्वान् ने कोई भाष्य ग्रन्थ लिखा था । (२) अन्ये शब्दोदाहृत
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अजातशत्रु ने नवम प्रपाठक की अष्टम कण्डिका के भाष्य में लिखा है
'अन्ये पुनरिहापि एक इति श्रधिकार मनुसारयन्ति । पृष्ठ २२० । यहा अन्ये पद से संकेतित यदि पूर्व-निर्दिष्ट भाष्यकार न हों, तो निश्चय ही कोई अन्य व्याख्याकार अभिप्रेत होगा ।
हमारे विचार में तो जिस ढंग से अन्य शब्द का, और वह भी वहुवचन में प्रयोग किया है, उससे प्रतीत होता है कि अजातशत्रु के सम्मुख पुष्पसूत्र की कई व्याख्याएं थीं, जिनमें कुछ व्याख्याकारों ने के पद की प्रवृत्ति मानी थी, कुछ ने नहीं मानी थी ।
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(३) उपाध्याय अजातशत्रु
उपाध्याय श्रजातशत्रु कृत पुष्पसूत्र भाष्य काशी से छप चुका है । इसका उल्लेख हरदत्तविरचित सामवेदसर्वानुक्रमणी में भी मिलता है-- १५ 'भाष्यकारं भट्टपूर्वमुपाध्यायमहं सदा । ऋक्तन्त्र परिशिष्ट' पृष्ठ ४ ।
यहां स्मृत भट्ट उपाध्याय सम्भवतः उपाध्याय अजातशत्रु ही है । इससे अधिक उपाध्याय अजातशत्रु के विषय में हम कुछ नहीं जानते ।
(४) रामकृष्ण दीक्षित सूरि
सामवेद की सर्वानुक्रमणी के लेखक हरदत्त ने पुष्पसूत्र के प्रकरण के अन्त में पुनः लिखा है
१. डा० सूर्यकान्त सम्पादित ।
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इदं फुल्लस्य सूत्रस्य बृहद्भाष्यं हि यत्कृतम् ।
नानाभाष्यास्यया रामकृष्ण दीक्षितसूरिभिः ॥' ऋक्तन्त्र परि० २५
पृष्ठ ७ ।