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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
चारायणीय शिक्षा कश्मीर से प्राप्त हुई थी। इसका उल्लेख अध्यापक कीलहान ने इण्डिया एण्टीक्वेरी जुलाई सन् १८७६ में किया है। ___चारायणि का ही नामान्तर चारायण भी है। काशकृत्स्न और काशकृत्स्नि के समान अथवा पाणिन और पाणिनि के समान चारायण और चारायणि में भी अण् और इन दोनों प्रत्यय देखे जाते हैं।
चारायण के विषय में इस ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ ११३-११५ (च० सं०) तक विस्तार से लिख चुके हैं।
६-सायप्रातिशाख्य-प्रवक्ता सामवेद का प्रातिशाख्य पुष्पसूत्र अथवा फुल्लसूत्र' के नाम से प्रसिद्ध है।
पुष्पसूत्र का प्रवक्ता-हरदत्त ने सामवेदीय सर्वानुक्रमणी में लिखा है
सूत्रकारं वररुचि वन्दे पाणिञ्च वेधसम् ।
फुल्लसूत्रविधानेन खण्डप्रपाठकानि च ॥' अर्थात् फुल्लसूत्र का विधाता सूत्रकार वररुचि है। आगे पुनः लिखा है
'वन्दे वररुचि नित्यमूहाब्धेः पारदृश्वनम् ।
पोतो निनिर्मितो येन फुल्लसूत्रशतैरलम् ॥' पृष्ठ ७ । अर्थात् ऊहगानरूपी समुद्र के पारदृश्वा वररुचि ने फुल्लसूत्र की रचना की।
यह वररुचि कौन है, यह विचारणीय है । अधिक सम्भावना यही है कि यह याज्ञवल्क्य का पौत्र कात्यायन का पुत्र फुल्ल-सूत्रकार
वररुचि हो। २५ आपिशलि-प्रोक्त-धातुवृत्ति ( मैसूर संस्करण ) के सम्पादक
१. द्र० – प्रागे उध्रियमाण हरदत्तवचन ।
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