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________________ ४०२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इस प्रातिशाख्य का उल्लेख श्री पं० दामोदर सातवलेकर द्वारा सम्पादित मैत्रायणी शाखा के प्रस्ताव में नासिकवासी श्री पं० श्रीधरशास्त्री वारे ने पृष्ठ १६ पर किया है । उसे देखकर मैंने अपने 'सं० व्या० शास्त्र का इतिहास के प्रथम भाग के मुद्रणकाल में मैत्रायणीय प्राति५ शाख्य के विषय में माननीय श्रीधरशास्त्री वारे को १२।९।४६ को एक पत्र लिखा। उसका आपने जो उत्तर दिया, वह इस प्रकार हैभाद्र. कृ. गुरौ श्रीः नाशिक शके १८७० क्षेत्रतः सन्तु भूयांसि नमांसि । भावत्कं १२।९।४८ तनीनं कृपापत्रं समुपालभम् । प्राशयश्च विदित: । मैत्रायणोसंहिताप्रस्तावे 'प्राग्निवेश्यः ६।४, शांखायनः २।३।७, एवं क्वचित् द्वे संख्ये क्वचिच्च तिस्रः संख्याः निर्दिष्टाः सन्ति । सोऽयं संकेतः मैत्रायणीयप्रातिशाख्यस्य प्रध्यायकण्डिका-सूत्राणामनुक्रमप्रत्यायक इति ज्ञेयम् । मैत्रायणीयं प्रातिशाख्यं मत्सबिधे नास्ति, मयाऽन्यत पानीतमासीत् । मूलमात्रमेव वर्तते। १५ यदि तत्रभवताऽपेक्ष्यते मैत्रायणीयं प्रातिशाख्यं, तहि निम्नलिखित स्थलसंकेतेन पत्रव्यवहारं कृत्वा प्रयत्नो विधेयः। श्री रा० रा. भाऊ साहेब तात्या साहेब मुटे पञ्चवटी, नासिक अथवा श्री रा०रा० शंकर हरि जोशी अभोणकर जि० नासिक, ता० कुलवण, पो० मु० अभोणे । एतस्मिन् स्थानद्वये मैत्रायणीयं प्रातिशाख्यमस्ति । एते महाभागास्तच्छाखीया एव । तत एवानीतं मया, कार्यनिर्वाहोत्तरं प्रपितं तेभ्यः । एवमेव कदाचित् स्मर्तव्योऽयं जनः । किमतोऽधिकमिति विज्ञप्तिः। भावत्क: श्रीधर अण्णाशास्त्री वारे २५ इस पत्र से स्पष्ट है कि पत्र में लिखे दो स्थानों में यह प्राति शाख्य विद्यमान है। मैं अभी तक इसकी प्रतिलिपि प्राप्त नहीं कर सका। इस प्रातिशाख्य के प्रवक्ता का नाम अज्ञात है। इसमें निम्न ऋषियों का उल्लेख मिलता है ३० १, द्र. --- मैत्रायगी संहिता श्रीधरशास्त्री लिखित प्रस्ताव, पृष्ठ १६ ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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