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________________ ४०० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास मत का 'अन्ये तु अवते नाना छन्दस्यानामपि वृत्तानां संकरादुरजातयो भवन्तीति, तदयुक्तम् ।' सन्दर्भ में गार्ग्य गोपाल द्वारा श्रीनाथ मत का प्रत्याख्यान उपलब्ध होता है। श्रीनाथ का काल भी अनिर्णीत है। ५. गार्य गोपाल यज्वा विरचित भारद्वाजीय पितृमेवभाष्य सूत्र उपलब्ध होता है। इसमें लोष्ट-चयन प्रकरण में यल्लाजी नाम के विद्वान द्वारा विरचित धर्मशास्त्रनिबन्धोक्त अर्थ को उद्धृत करके उसका खण्डन किया है । यल्लाजी का भी काल विवेचनीय है। मैसूर से प्रकाशित प्रापस्तम्ब श्रौतसूत्र के प्रथम भाग की भूमिका ५० पृष्ठ ३० से ज्ञात होता है कि गार्य गोपाल ने प्रापस्तम्ब कल्प के पितृमेध की व्याख्या की थी। इस प्रकार गार्ग्य गोपाल यज्वा का काल अनिर्णीत ही रहता है। अन्य ग्रन्थ-गार्य गोपाल विरचित वृत्तरत्नाकर की ज्ञानदीप टीका, भारद्वाजीय पितृमेध और आपस्तम्बीय पितृमेध सूत्र व्याख्या १५ का उल्लेख ऊपर किया जा चुका है। इनके अतिरिक्त गार्ग्य गोपाल ने स्वरसम्पत् नाम का ग्रन्य भी लिखा था। वैदिकाभरण १४।२९ में'प्रस्यार्थोऽस्माभिः स्वरसम्पदि विवृतः।' का उल्लेख मिलता है। गोपालकारिका नाम से प्रसिद्ध श्रौतकारिका, और गोपालसूरि नाम से उल्लिखित बौधायन सूत्रगत प्रायश्चित्त सूत्र व्याख्यारूप प्राय२० श्चित्तदीपिका इसी गोपाल यज्वा विरचित हैं, अथवा अन्यकृत यह भी अज्ञात है। (६) वीरराघव कवि वीरराघव कवि कृत तैत्तिरीय प्रातिशाख्य की शब्दब्रह्मविलास व्याख्या का एक हस्तलेख मद्रास के राजकीय हस्त लेख-संग्रह में विद्य२५ मान है। द्र०-सूचीपत्र भाग ३, खण्ड १३, पृष्ठ ३३६६, संख्या २४५०। इस व्याख्या में प्रात्रेय-माहिषय-वररुचि के साथ त्रिरत्नभाष्य और वैदिकाभरण भी उद्धृत है । अतः यह व्याख्या वैदिकाभरण से भी पीछे की है।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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