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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता
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ज्ञात होता है कि सोमयार्य गार्ग्य गोपाल यज्वा से प्राचीन है । यह सोमार्य के काल की उत्तर सीमा है ।
इससे अधिक सोमयार्य के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं । (५) गार्ग्य गोपाल यज्वा
गार्ग्य गोपाल यज्वा ने तैत्तिरीय पार्षद पर वैदिकाभरण नाम्नी ५ एक व्याख्या लिखी है । यह मैसूर के संस्करण में छपी है ।
गार्ग्य गोपाल यज्वा ने अपना कोई परिचय नहीं दिया, इसलिए इसका सारा इतिवृत्त अन्धकारावृत है । गार्ग्य गोत्र नाम प्रतीत होता है । यज्वा कुलोपाधि है । अतः मूल नाम गोपाल इतना ही है
काल - गार्ग्य गोपाल यज्वा का काल भी अनिश्चित है । इसके १० वैदिकाभरण में कोई भी ऐसा ग्रन्थ अथवा ग्रन्थकार निर्दिष्ट नहीं है, जिसके आधार पर इसका काल - निर्णय हो सके ।
इस ग्रन्थ के सम्पादक पं० कस्तूरि रङ्गाचार्य ने गोपाल के काल- निर्णय के लिए भूमिका में जो कुछ लिखा है, उसका सार इस प्रकार है
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गार्ग्य गोपाल यज्वा ने वृत्तरत्नाकर की ज्ञानदीप नाम्नी व्याख्या लिखी है । यह मद्रास से आन्ध्राक्षरों में मुद्रित हुई है । इसमें वदन्त्य - arrer सूत्र की व्याख्या में -
चपलावक्त्रस्य मथा
'गोपाल मिश्ररचिते व्याख्याने ज्ञानदीपाख्ये वेद' रहस्यमखिलं वृत्तानां सूरिभिः सम्यक् ॥' विपरीत पथ्यावक्त्रस्य यथा
'वेदार्थतत्त्ववेदिनि गायें गोपालमिश्रेऽन्यैः । कार्या नैव कदाचन धीरैः सर्वाधिकेऽसूया ॥'
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स्वयं अपने गौरव का उल्लेख किया है । इससे स्पष्ट है कि गार्ग्य २५ गोपाल वृत्तरत्नाकर के कर्त्ता भट्ट केदार से अर्वाचीन है ।
गार्ग्य गोपाल वृत्तरत्नाकर के व्याख्याकार कवि शार्दूल श्रीनाथ से भी अर्वाचीन है। क्योंकि उपजाति लक्षण श्लोक व्याख्या में श्रीनाथ समर्थित 'नानाछन्दोभबों के योग में भी उपजाति छन्द होता है' इस