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________________ प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३६६ ज्ञात होता है कि सोमयार्य गार्ग्य गोपाल यज्वा से प्राचीन है । यह सोमार्य के काल की उत्तर सीमा है । इससे अधिक सोमयार्य के विषय में हमें कुछ भी ज्ञात नहीं । (५) गार्ग्य गोपाल यज्वा गार्ग्य गोपाल यज्वा ने तैत्तिरीय पार्षद पर वैदिकाभरण नाम्नी ५ एक व्याख्या लिखी है । यह मैसूर के संस्करण में छपी है । गार्ग्य गोपाल यज्वा ने अपना कोई परिचय नहीं दिया, इसलिए इसका सारा इतिवृत्त अन्धकारावृत है । गार्ग्य गोत्र नाम प्रतीत होता है । यज्वा कुलोपाधि है । अतः मूल नाम गोपाल इतना ही है काल - गार्ग्य गोपाल यज्वा का काल भी अनिश्चित है । इसके १० वैदिकाभरण में कोई भी ऐसा ग्रन्थ अथवा ग्रन्थकार निर्दिष्ट नहीं है, जिसके आधार पर इसका काल - निर्णय हो सके । इस ग्रन्थ के सम्पादक पं० कस्तूरि रङ्गाचार्य ने गोपाल के काल- निर्णय के लिए भूमिका में जो कुछ लिखा है, उसका सार इस प्रकार है १५ गार्ग्य गोपाल यज्वा ने वृत्तरत्नाकर की ज्ञानदीप नाम्नी व्याख्या लिखी है । यह मद्रास से आन्ध्राक्षरों में मुद्रित हुई है । इसमें वदन्त्य - arrer सूत्र की व्याख्या में - चपलावक्त्रस्य मथा 'गोपाल मिश्ररचिते व्याख्याने ज्ञानदीपाख्ये वेद' रहस्यमखिलं वृत्तानां सूरिभिः सम्यक् ॥' विपरीत पथ्यावक्त्रस्य यथा 'वेदार्थतत्त्ववेदिनि गायें गोपालमिश्रेऽन्यैः । कार्या नैव कदाचन धीरैः सर्वाधिकेऽसूया ॥' २० स्वयं अपने गौरव का उल्लेख किया है । इससे स्पष्ट है कि गार्ग्य २५ गोपाल वृत्तरत्नाकर के कर्त्ता भट्ट केदार से अर्वाचीन है । गार्ग्य गोपाल वृत्तरत्नाकर के व्याख्याकार कवि शार्दूल श्रीनाथ से भी अर्वाचीन है। क्योंकि उपजाति लक्षण श्लोक व्याख्या में श्रीनाथ समर्थित 'नानाछन्दोभबों के योग में भी उपजाति छन्द होता है' इस
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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