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प्रातिशास्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३९७ काल-वररुचि, आत्रेय और माहिषेय के भाष्य सोमयार्य से प्राचीन हैं, इतना उसके वचन से व्यक्त है । परन्तु इसका काल क्या है, यह अज्ञात है।
सोमयार्य ने यदि वररुचि-यात्रेय-माहिषेय नाम कालक्रम से उल्लिखित किये हों, तब तो मानना होगा कि आत्रेय वररुचि से ५ उत्तरभावी है । परन्तु हमारा विचार है कि सोमयार्य ने तीनों का निर्देश कालक्रम से नहीं किया है।
अनेक पात्रेय प्रात्रेय नामक अनेक प्राचार्य हुए हैं। तैत्तिरीय सम्प्रदाय में भी पदकार आत्रेय', तैत्तिरीय प्रातिशाख्य ५॥३१०; १७, ८ में स्मृत आत्रेय, और तैत्तिरीय प्रातिशाख्य भाष्यकार प्रात्रेय इस १० प्रकार तीन पात्रेय प्रसिद्ध हैं । तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में स्सृत पात्रेय ही प्रातिशाख्य का भाष्यकार नहीं हो सकता, यह स्पष्ट है। पदकार
आत्रेय शाखाप्रवचनकाल का व्यक्ति है, इसलिए वह सुतरां अति प्राचीन है। हां, तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में स्मृत आत्रेय पदकार आत्रेय हो सकता है।
ऋपार्षद का व्याख्याता पात्रेय-एक आत्रेय ऋक्पार्षद का व्याख्याता है । इसका वर्णन हम पूर्व कर चुके हैं । हमारा विचार है कि दोनों पार्षदों का व्याख्याता आत्रेय एक ही है।
मात्रेय गोत्र नाम - आत्रेय यह गोत्र नाम है। व्याख्याकार का निज नाम अज्ञात है।
इस प्रकार पार्षद व्याख्याता पात्रेय के सम्बन्ध में कुछ भी परिज्ञान न होने से इसका काल भी अज्ञात है।
(२) वररुचि . वररुचि विरचित प्रातिशाख्य-व्याख्यान का उल्लेख त्रिभाष्यरत्न के कर्ता सोमयार्य ने श२८; २११४.१६, ८।४०; ४११९, २०, २५ २२; १८,७; २१।१५ आदि सूत्रों के व्याख्यान में किया है। __वररुचि का भाष्य साक्षात् अनुपलब्ध है। इसलिए इसके विषय . में यह भी ज्ञात नहीं कि यह कौनसा वररुचि है। संस्कृत वाङ्मय में
१. यस्याः पदकृदात्रेयो वृत्तिकारस्तु कुण्डिनः । तैत्तिरीय काण्डानुक्रमणी।
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