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________________ २/३ शब्दों के धातुजत्व और धातु के स्वरूप पर विचार १७ शब्दों के धातुजत्व पर विचार-भाषा-वैज्ञानिकों ने इस प्रश्न पर गहरा विचार किया है कि मानव भाषा के प्रारम्भिक मूल शब्द कौन से रहे होगे । कतिपय विद्वानों ने शब्दों के धातूजत्व सिद्धान्त को दष्टि में रखकर भाषा के प्रारम्भिक शब्द धातुमात्र स्वीकार किए, परन्तु यह पक्ष व्यावहारिक दृष्टि से अनुपपन्न है। प्रारम्भ में चाहे कोई भी ५ भाषा रही हो, परन्तु केवल धातुमात्र शब्दो के साहाय्य से लोकव्यवहार कथंचित् भी उपपन्न नहीं हो सकता। लोक-व्यवहार के यथोचित उपपन्न होने के लिए नाम प्राख्यात उपसर्ग और निपात आदि सभी प्रकार के शब्दों की आवश्यकता होती है। अतः भाषा के मूल शब्द धातुमात्र नहीं माने जा सकते । परन्तु शब्दों को १० धातुज मानन पर धातुओं की सत्ता उनसे पूर्व स्वीकार अवश्य करनी पड़ती है। भारतीय मत का स्पष्टीकरण-भारतीय भाषाशास्त्रज्ञ भी सम्पूर्ण नाम-शब्दों को धातुज मानते है, यह हम पूर्व लिख चुके हैं। इसलिए भारतीय मत का स्पष्टीकरण आवश्यक है। अक्किालिक स्पष्टीकरण-- अक्किालिक भारतीय भाषाविदों ने शब्दों के धातुजत्व पर गम्भीर विवेचन किया, और उन्होंने राद्धान्त स्थिर किया कि 'शब्द नित्य हैं,' अर्थात् पूर्वतः विद्यमान हैं । शास्त्रकारों ने पूर्वतः विद्यमान शब्दों में प्रकृति-प्रत्यय अंश की कल्पना करके उनके उपदेश का एक मार्ग बनाया है। शास्त्रकारों का प्रकृति-प्रत्यय २० विभाग काल्पनिक है, पारमार्थिक नहीं । अत एव शब्द-निवेचन के दिषय में शास्त्रकारों में मतभेद भी देखा जाता है। यदि प्रकृतिप्रत्यय-विभाग काल्पनिक न होता, तो शास्त्रकारों में मतभेद भी न होता । इस स्पष्टीकरण के अनुसार धातुजत्व सिद्धान्त का कोई मूल्य ही नहीं रहता । अतः हमारी दृष्टि में यह स्पष्टीकरण चिन्त्य है। २५ प्राचीन वाङमय के साहाय्य से स्पष्टीकरण-'न प्रसिद्धिनिर्मूला' इस कहावत के अनुसार भारतीय प्राचीनतम राद्धान्त 'सब शब्द धातुज हैं' का कुछ मूल अवश्य होना चाहिए। कुछ मूल होने पर १. अन्वाख्यानानि भिद्यन्ते शब्दव्युत्पत्तिकर्मसु । वाक्य० २।१७१।। कैश्चिनिर्वचनं भिन्न गिरतेर्गर्जतेर्गमेः । गिरतेर्गदतेर्वापि गौरित्यत्रानुदर्शितम् ॥ .. वाक्य० २११७५॥
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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