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________________ १६ संस्कृत-व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इस प्रकार सम्पूर्ण कृदन्त शब्दों को रूढ स्वीकार कर लेने पर भी उत्तरवर्ती वैयाकरण अपने शब्दानुशासनों की परिपूर्णता के लिए प्राचीन परम्परानुसार कृदन्त शब्दों का अन्वाख्यान करते रहे। इतना ही नहीं, कातन्त्र के मूलप्रवक्ता द्वारा कृदन्त भाग की उपेक्षा होने ५ पर भी, उत्तरवर्ती आचार्य कात्यायन को कातन्त्र को परिपूर्णता के लिए कृदन्त भाग का प्रवचन करना पड़ा। तद्धितान्त भी रूढ शब्द शब्दों की रूढता कृदन्तों तक ही सीमित नहीं रही। कातन्त्रकार ने यद्यपि ताद्धित शब्दों का उपदेश किया है, परन्तु कातन्त्र१० परिभाषा के वृत्तिकार दुर्गासिंह' ने तद्धितान्तों को भी रूढ माना है। वह लिखता है-संज्ञाशब्दत्वात् तद्धितान्तानाम् ।' धातुस्वरूप वैयाकरणों के मतानुसार शब्द तीन प्रकार के हैं-धातुज, अधातुज और नामज । धातुज भी दो प्रकार के हैं-पचति, पठति आदि क्रिया १५ शब्द और पाचक, पाठक आदि नाम शब्द । वृक्षादि नाम, उपसर्ग, निपात और अव्यय अधातुज अर्थात् रूढ माने जाते हैं। तद्धित प्रत्ययान्त शब्द नामज होते हैं । समस्त अर्थात् समासयुक्त पद उक्त त्रिविध शब्दों के समुदायमात्र होते हैं, अतः उनकी पृथक् गणना नहीं की जाती। २० धातुलक्षण-वैयाकरण निकाय में धातु शब्द का लक्षण इस प्रकार किया जाता है दधाति विविध शब्दरूपं यः स धातुः । अर्थात जो शब्दों के विबिधरूपों को धारण करनेवाला, निष्पादन करने वाला [शब्द के अन्तःप्रविष्ट रूप] है, वह 'धातु' २५ कहाता है। १. यह दुर्गसिंह कातन्त्रवृत्तिकार दुर्गसिंह से भिन्न है। सम्भव है कातन्त्रवृत्ति का टीकाकार दुर्गसिंह होवे । दो दुर्गसिहों के लिये प्रथम भाग में 'कातन्त्र के व्याख्याता' प्रकरण देखें। २. कातन्त्र-परिभाषावृत्ति, पृष्ठ ५२ । द्र० परिभाषा-संग्रह, पूना संस्करण ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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