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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
प्रतिज्ञासूत्र - २८२,२९३ अनन्त याज्ञिक - २६३ ज्योत्स्ना - पृष्ठ ३०४,३०५
2. अमरेश
अमरेश नामक विद्वान् ने प्रातिशाख्यानुसारिणी वर्णरत्नदीपिका शिक्षा का प्रणयन किया है । यह शिक्षा काशी से प्रकाशित शिक्षासंग्रह में पृष्ठ ११७-१२७ तक मुद्रित है ।
अमरेश ने अपना कोई परिचय नहीं दिया । प्रारम्भ में केवल अपने को भारद्वाज कुल का कहा है । वह लिखता है -- अमरेश इति ख्यातो भारद्वाजकुलोद्वहः । सोऽहं शिक्षां प्रवक्ष्यामि प्रातिशाख्यानुसारिणीम् ॥ इस शिक्षा में निम्न ग्रन्थ वा ग्रन्थकारों के मत निर्दिष्ट हैं -
वैयाकरण सम्मत – पृष्ठ १२४
कातीय - पृष्ठ १२४
याज्ञवल्क्य - पृष्ठ १२४ वाजसनेयक मन्त्र - पृष्ठ १२४ गार्ग्यमत - पृष्ठ १३१ माध्यन्दिन - पृष्ठ १३१ कात्यायन --- पृष्ठ १३६
६ - तैत्तिरीय प्रातिशाख्यकार
कृष्णयजुर्वेद के तैत्तिरीय चरण से सम्बद्ध एक प्रातिशाख्य उपलब्ध होता है । यह तैत्तिरीय प्रातिशाख्य के नाम से प्रसिद्ध है ।
१. वर्तमान में तैत्तिरीय संहिता के नाम से प्रसिद्ध संहिता वस्तुत: श्रापस्तम्बी संहिता है । तैत्तिरीय चरण की अन्य संहिताओं का उच्छेद हो जाने
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एक मात्र बची आपस्तम्बी संहिता का भी चरण नाम से व्यवहार होने लग गया । इसके प्राचीन हस्तलेखों में भी प्राय: श्रापस्तम्बी संहिता नाम उपलब्ध होता है।