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२/५० प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३६३ . एक शिक्षा बनायी है । यह काशी से प्रकाशित शिक्षासंग्रह में छप चुकी है।
परिचय-ग्रन्थकार ने शिक्षा के प्रारम्भ में अपने पिता का नाम . सदाशिव लिखा है, और अन्त में अपना उपनाम गोडशे बताया है। इससे विदित होता है कि यह ग्रन्थकार महाराष्ट्रीय है।
५ काल-बालकृष्ण ने ग्रन्थ-लेखन-काल अन्त में इस प्रकार . लिखा है
'शाके द्वयभ्राष्टभूमिते शुभे विक्रमवत्सरे।
माघे मासि सिते पक्षे प्रतिपद्भानुवासरे।' इसके अनुसार यह शिक्षा-ग्रन्थ वि० सं० १८०२ माघ शुक्ल । प्रतिपद रविवार को पूर्ण हुआ।
वैशिष्टय-इस शिक्षा में प्रधानतया कात्यायन प्रातिशाख्य के सूत्रों की क्रमविशेष से व्याख्या की है। इसमें प्रातिशाख्य के लगभग तीन चौथाई सूत्र व्याख्यात हैं।
उद्धृत ग्रन्थ वा ग्रन्थकार-इस शिक्षा में निम्न ग्रन्थ वा ग्रन्थ- १५ कार उद्धृत हैं
याज्ञवल्क्य-पृष्ठ २१०,२१२,२२६,२३४,२९७ माध्यन्दिनशिशा-पृष्ठ २१५' औजिहायनक (माध्यन्दिन मतानुसारी)-पृष्ठ २१५ . कात्यायन शिक्षा - पृष्ठ २२५, २६७ अमोघनन्दिनी शिक्षा-पृष्ठ २२५,२८२' मल्ल कवि-पृष्ठ २२५ हस्तस्वर-प्रक्रिया-ग्रन्थ-पृष्ठ २२५ पाराशरीय चपला-पृष्ठ २६१
१. माध्यन्दिनशिक्षा के नाम से यहां उद्धृत श्लोक माध्यन्दिन-शिक्षा के .. लघु और बृहत दोनों पाठों में उपलब्ध नहीं होता।
२. यहां अमोघनन्दिनी को प्रतिज्ञासूत्र की शेषभूत कहा है। ३. यह ग्रन्थ शिक्षासंग्रह में पृष्ठ १५३-१६० तक छपा है।
४. यहां 'चपला' शब्द का अभिप्राय विचारणीय है। पाराशरी शिक्षा में पाणिनीय शिक्षा का भी निर्देश है । द्र०-शिक्षासंग्रह, पृष्ठ ६० ।। ३०