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३६२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास होगा। हमारा अनुमान है कि यह व्याख्या शिवरामेन्द्र सरस्वती की है, जिनका संन्यास से पूर्व शिवराम-शिवरामचन्द्र नाम था। यदि हमारा अनुमान ठीक हो, तो इसका काल सं० १६०० वि० के लगभग होगा।
(६) विवरणकार वाजसनेय प्रातिशाख्य पर किसी विद्वान् ने एक विवरण नाम की व्याख्या लिखी थी। इसका उल्लेख प्रतिज्ञासूत्र के व्याख्याता अनन्तदेव याज्ञिक ने इस प्रकार किया है
'एतेषां स्वरितभेदानां हस्तप्रदर्शनं तु 'स्वरितस्व चोत्तरो देशः '१० प्रतिहण्यते' (४।१४०) इति सूत्रे प्रातिशाख्यविवरणे स्पष्टम् तद्यथा - . उदात्तादनुदात्ते तु वामाया भ्रुव प्रारभेत् ।
उदात्तात् स्वरितोदात्ते क्रमाद्दक्षिणतो न्यसेत् ।।१।। प्रणिघातः प्रकृष्टो निघातः। नितरामतितरां मनुष्यदानवद् हस्तो न्युब्जापरपर्यायः । केषुचिद् भेदेषु पितृदानवद् इति ।' , यह पाठ प्रातिशाख्य के उव्वट और अनन्त भट्ट के व्याख्यान में
नहीं मिलता। इससे स्पष्ट है कि यह विवरण उनके भाष्यों से पृथक् है। __प्रतिज्ञासूत्र का व्याख्याता नागदेव सुत अनन्त देव है, अथवा
अन्य याज्ञिक अनन्त देव है, इसका सन्देह होने से इस विवरण का २० काल भी सन्दिग्ध है।
प्रातिशाख्यानुसारिणी शिक्षा कतिपय विद्वानों ने वाजसनेय प्रातिशाख्य को दृष्टि में रखकर कुछ शिक्षा-ग्रन्थ रचे हैं। यतः उनका सामीप्येन वा दूरतः प्रातिशाख्य के साथ सम्वन्ध है, अतः हम उनका यहां निर्देश करते हैं- .
१. बालकृष्ण शर्मा (सं० १८०२ कि०) बालकृष्ण नोमक विद्वान् ने प्रातिशाख्यप्रदोपशिक्षा नाम की
१. इसके विषय में देखिए 'सं० व्या० शास्त्र का इतिहास', भाग १ पृ० ४४४-४४६ (च० सं०)।
२. द्रप्टव्य-प्रतिज्ञासूत्र के व्याख्याता अनन्तदेव के प्रकरण में।