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________________ प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३६१ ' हम अनुपद ही सदाशिव-तनूजन्मा बालकृष्ण विरचित प्रातिशास्यप्रदीपशिक्षा का वर्णन करेंगे। उसका लेखनकाल सं०१८०२ वि० है। दोनों ग्रन्थकारों के पिता का समान नाम होने, तथा दोनों का समान काल होने से हमारे विचार में बालकृष्ण और राम अग्निहोत्री दोनों औरस भ्राता हैं। राम अग्निहोत्री ने प्रातिशाख्यदीपिका के ५ प्रारम्भ में 'नानाग्रन्थान् समालोक्य उव्वटाविकृतानपि। शिक्षाश्च सम्प्रदायांश्च...... ......... ॥२॥ शिक्षाओं का निर्देश किया है। सम्भव है यहां शिक्षा शब्द से बालकृष्ण शर्मा कृत प्रातिशाख्यप्रदीपशिक्षा का भी निर्देश हो। १० प्रातिशाख्यप्रदीपशिक्षा में क्रम विशेष से प्रातिशाख्य के सूत्रों का ही प्राधान्येन व्याख्यान है। इस शिक्षा से प्रातिशाख्य के अनेक प्रकरणों का प्राशय अच्छे प्रकार स्पष्ट होता है। विशेष-संख्या ३, ४ के लेखकों द्वारा लिखे गये ग्रन्थ सीधे प्रातिशाख्य के व्याख्यारूप नहीं हैं, अपितु जैसे अष्टाध्यायी पर १५ प्रक्रियानुसारी सिद्धान्तकौमुदी आदि व्याख्यानग्रन्थ बने, उसी प्रकार प्रातिशाख्य के भी ये प्रकरणानुसारी व्याख्यानग्रन्थ हैं। आगे निर्दिश्यमान बालकृष्ण गोडशे का प्रातिशाख्यप्रदीपशिक्षा ग्रन्थ भी इसी प्रकार का है। (५) शिवराम (?) संस्कृत विश्वविद्यालय' काशी के सरस्वती भवन के संग्रह में शुक्लयजुःप्रातिशाख्य पर शिवास्य भाष्य का एक हस्तलेख है। हमने सन् १९३४ में इसे देखा था। यह महीधर संग्रह के २८ वें वेष्टन में रखा हुआ था । ग्रन्थकार का नाम सन्दिग्ध है। - सरस्वती भवन के अधिकारियों ने महीधर के कुल में सम्प्रति २५ वर्तमान व्यक्ति के घर से महीधर के सम्पूर्ण संग्रह को प्राप्त करने का . . रतुत्य प्रयत्न किया है । इस संग्रह में वर्तमान सभी ग्रन्थ महीधर के काल के हैं, अथवा इनमें उत्तरोत्तर भी कुछ ग्रन्थों की वृद्धि हुई है, यह कहना कठिन है। यदि इस संग्रह के सभी ग्रन्थ महीधर के काल के मान लें, तो इस व्याख्या का काल सं० १६४० दि० से पूर्ववर्ती ३०
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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