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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३८६ महीधर का काल निश्चित है। उसने सं० १६४५ वि० में मन्त्रमहोदधि ग्रन्थ लिखा था। उसने यह काल स्वयं ग्रन्थ के अन्त में दिया है।
इस प्रकार महीधर का उल्लेख करने से, विधानपरिजात का लेखन काल सं० १६८२ होने से, और अनन्तपुत्र राम के पञ्चो- ५ पाख्यानसंग्रह का लेखन समय १६६४ निश्चित होने से स्पष्ट है कि मनन्त का काल वि० सं० १६३०-१६६० के मध्य है। __ व्याख्या का नाम-अनन्त भट्ट के प्रातिशाख्य भाष्य का नाम पदार्थ-प्रकाश है।
व्याख्या का महत्त्व-अनन्त ने अपनी व्याख्या में काण्व संहिता १० के उदाहरण दिए हैं। इसके काण्वपाठानुसारी होने से काण्व संहिता और उसके पदपाठ पर इससे पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। __ मुद्रित ग्रन्थ-अनन्त के पदार्थप्रकाश (प्रातिशाख्यभाष्य) का जो संस्करण मद्रास से प्रकाशित हुआ है, वह अत्यन्त भ्रष्ट है। अनेकत्र पाठ त्रुटित हैं, बहुत्र पाठ आगे पीछे हो गये हैं । ग्रन्थ के १५ महत्त्व को देखते हुए इसके शुद्ध संस्करण की महती आवश्यकता है।
(3) श्रीराम शर्मा (सं० १८०२ वि० से पूर्व) श्रीराम शर्मा नामक व्यक्ति ने कात्यायन प्रातिशाख्य पर ज्योत्स्ना नाम्नी एक विवृत्ति लिखी थी।" इसका एक हस्तलेख दक्खन कालेज के हस्तलेख-संग्रह में विद्यमान है। देखो-सूचीपत्र २० संख्या २८८ ।
परिचय-ग्रन्थकार ने अपना कुछ भी परिचय नहीं दिया है। अतः इसके वंश आदि के विषय में हम कुछ भी लिखने में असमर्थ हैं।
काल-ग्रन्थकार द्वारा परिचय न देने से इसका काल भी
१. माध्यन्दिनानुसारिणा ज्योत्स्नाख्या विवि (वृ)तिलघुः । क्रियते २५ सुखबोधार्थ मन्दानां रामशर्मणा ॥२॥ ग्रन्थारम्भे।
२. इसका एक हस्तलेख श्री गुरुवर पं० भगवत्प्रसाद मिश्र प्राध्या० सं० वि० वि० वाराणसी के संग्रह में भी है।