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________________ प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३८७ इस ग्रन्थ के विशुद्ध प्रादर्श संस्करण की महती आवश्यकता है। इस संस्करण के लिए आगे निर्दिष्ट हस्तलेखों का उपयोग करना अत्यावश्यक है। प्रति प्राचीन हस्तलेख-दक्खन कालेज पूना के संग्रह में उव्वटभाष्य के दो अति प्राचीन हस्तलेख हैं । एक संख्या २७६ का सं० ५ १५३८ का है और दूसरा सं० २८३ का संवत् १५६३ का है। इसी संग्रह में संख्या २८६ का एक हस्तलेख और है। यद्यपि इस पर लेखन-काल निर्दिष्ट नहीं है, तथापि इस में पृष्ठ-मात्राओं का प्रयोग होने से यह हस्तलेख भी पर्याप्त प्राचीन है। पृष्ठमात्रामों का प्रयोग लगभग ४०० वर्ष पूर्व नागराक्षरों में होता था। (२) अनन्त भट्ट (सं० १६३०-१६८२ वि० ) अनन्त भट्ट विरचित प्रातिशाख्य व्याख्या मद्रास विश्वविद्यालय की ग्रन्थमाला से निस्सत वाजसनेय प्रातिशाख्य में उव्वट टीका के साथ छपी है। परिचय-अनन्त भट्ट ने अपनी व्याख्या के अन्त में स्वपरिचय १५ इस प्रकार दिया है अम्बा भागीरथी यस्य नागदेवात्मजः सुधीः। तेनानन्तेन रचितं प्रातिशाख्यस्य वर्णनम् ॥ - इस उल्लेख के अनुसार अनन्त की माता का नाम भागीरथी पिता का नाम नागदेव था । यह काण्वशाखा का अनुयायी था। २० ऐसा ही परिचय अनन्त ने अपने काण्वसंहिता भाष्य में भी दिया है। अनन्त के पुत्र का नाम राम था। इसने पञ्चोपाख्यानसंग्रह नाम ग्रन्थ सं० १६६४ में लिखा था।' देश-अनन्त ने अपने ग्रन्थ काशी में लिखे हैं। काण्वयाजुष भाष्य के पूना के कोश के अन्त में लेख है २५ काश्यां वासः यदा यस्य चित्तं यस्य रमाप्रिये ॥८॥ विधानपारिजात ग्रन्थ के अन्त में भी काशी में ग्रन्थ की पूर्ति का उल्लेख है। १. द्र० - इण्डिया आफिस पुस्तकालय मूचीपत्र, पृष्ठ ६८५ । । ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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