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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
पाणिनीय अष्टाध्यायी पर लिखे गए वार्तिक इस कात्यायन के पुत्र वररुचि कात्यायन के हैं । यह हम इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ ३२४-३२७ (च० सं०) पर लिख चुके हैं ।
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प्रातिशाख्य- परिशिष्ट - कात्यायन प्रातिशाख्य के परिशिष्ट रूप में प्रतिज्ञासूत्र और भाषिकसूत्र प्रसिद्ध हैं । इनके विषय में हम स्वतन्त्र रूप से आगे लिखेंगे |
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व्याख्याकार
कात्यायन प्रातिशाख्य पर अनेक विद्वानों ने व्याख्याएं लिखी हैं । हम नीचे उनका निर्देश करते हैं
(१) उच्चट (सं० ११०० वि० )
उव्वट कृत वाजसनेय प्रातिशाख्य की भाष्य नाम्नी व्याख्या कई स्थानों से प्रकाशित हो चुकी है ।
परिचय - उब्वट के देशकाल आदि का परिचय हम ऋक्प्रातिशाख्य के व्याख्याकारों के प्रकरण में पूर्व लिख चुके हैं ।
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इस टीका के संस्करण - इस टीका के तीन संस्करण हमारी दृष्टि में आए हैं । एक जीवानन्द विद्यासागर द्वारा प्रकाशित सं० १९५० (सन् १८८३) का है । दूसरा युगलकिशोर सम्पादित कशी का संस्करण है, जो सं० १९६४ में प्रकाशित हुआ है इस संस्करण में प्रतिज्ञासूत्र, भाषिकसूत्र, जटादिविकृतिलक्षण, ऋग्यजुः परिशिष्ट २० तथा अनुवाकाध्याय परिशिष्ट भी अन्त में छपे हैं। तृतीय संस्करण वि० वेंकटराम शर्मा द्वारा सम्पादित मद्रास विश्वविद्यालय से सं० १९६१ (सन् १९३४) में प्रकाशित हुआ है । इसमें अनन्त भट्ट की व्याख्या भी साथ में छपी है ।
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तीनों भ्रष्ट - उव्वटभाष्य के तीनों संस्करण अत्यन्त भ्रष्ट हैं । वि॰ वेङ्कटराम शर्मा का संस्करण पराने संस्करणों से भी निकृष्ट है। पुराने संस्करणों में उव्वट भाष्य में उदाहरण रूप से दिये गए याजुष मन्त्रों के पते छपे थे, परन्तु इस संकरण में उन्हें भी हटाकर सम्पादक ने न जाने कौन सी प्रगति की है ।
श्रादर्श संस्करण की श्रावश्यकता - उक्त संस्करणों को देखते हुए