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. २४६ प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३८५
श्रौत-कात्यायन श्रौत प्रसिद्ध ही है। गृह्य-कात्यायन गृह्य का एक हस्तलेख 'सेण्ट्रल प्रवेसी आफ बरार' के हस्तलेख सूची-पत्र में निर्दिष्ट है। इस गृह्य के तीन हस्तलेख 'इतिहास संशोधन मण्डल पूना' के संग्रह में विद्यमान हैं । भण्डारकर प्राच्यविद्या संस्थान में पारस्कर गृह्य के नाम से कई हस्तलेख ५ ऐसे हैं जो कात्यायन गह्य के प्रतीत होते हैं। इस गृह्य का पाठ पं० जेष्ठाराम बम्बई द्वारा प्रकाशित पारस्करगृह्य के साथ छपा था, ऐसा हमें ज्ञात हुआ है । यह सस्करण हमारे देखने में नहीं आया। हमने कात्यायन गृह्य का अनेक कोशों के आधार पर सम्पादन करके सं० २०४० में रामलाल कपूर ट्रस्ट बहालगढ़ (सोनीपत) द्वारा १० छपवाया है।
स्वामी दयानन्द द्वारा उद्धृत-स्वामी दयानन्द सरस्वती ने संस्कार विधि के सं० १६३२ के संस्करण में इस गह्य के अनेक लम्बेलम्बे पाठ उद्धृत किए हैं। द्वितीयवार संशोधित सं० १९४० की संस्कारविधि में भी क्वचित् इस गृह्य का नामतः उल्लेख मिलता है। १५
कात्यायन और पारस्कर गह्य को समानता-ऋग्वेद के जैसे शांखायन और कौषीतकि मृह्यसूत्रों के पाठ प्रायः समान हैं, उसी प्रकार कात्यायन और पारस्कर गृह्यसूत्रों के पाठ भी परस्पर बहुत समानता रखते हैं। पुनरपि इन दोनों में पर्याप्त वैलक्षण्य है।
धर्मसूत्र -कल्प शास्त्र के तीन अवयव होते हैं-श्रौत, गृह्य और २० धर्म । कात्यायन के श्रीत और पृह्य तो उपलब्ध हैं, परन्तु धर्मसूत्र उपलब्ध नहीं हैं । कात्यायन के नाम से एक स्मति अवश्य मिलती है. परन्तु वह इस कात्यायन कृत प्रतीत नहीं होती। सम्भवतः उसे कात्यायन के धर्मसूत्र के आधार पर किसी ने बनाया हो। ___ इनके अतिरिक्त और कौन-कौन से ग्रन्य इस कात्यायन के हैं, २५ यह कहना कठिन है । श्रौतपरिशिष्ट तथा प्रातिशाख्य-परिशिष्ट इसी कात्यायन के प्रवचन हैं, अथवा अन्य व्यक्ति के यह निर्णय करना कठिन है, परन्तु हैं ये अवश्य प्राचीन । इसी प्रकार भ्राज नाम के श्लोक जिनका पतञ्जलि ने महाभाष्य के प्रारम्भ में उल्लेख किया है, वे इसी कात्यायन के हैं, अथवा वातिककार कात्यायन के, यह भी है, अज्ञात है।