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________________ ३८४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास 'इति प्रातिशाख्येऽष्टादश पटलम् । तृतीयोऽध्यायः समाप्ताः । सांखायनशाखायां प्रातिशाख्यं समाप्तम् ।' ......" द्र०-सूचीपत्र, ग्रन्थाङ्क १७ । पाठनिर्देशक खण्ड पृष्ठ ३ संख्या ४। इस प्रातिशाख्य के आद्यन्त के पाठ से तो प्रतीत होता है कि यह शाकल पार्षद है। परन्तु अन्तिम श्लोक के अन्त्यचरण 'स्वर्ग जयत्येभिरथामतत्वम् ॥३८॥७॥' के साथ ३८॥७ संख्याविशेष का निर्देश होने से सन्देह होता है कि यह पार्षद शाकल पार्षद से कुछ भिन्नता रखता हो, और इसका प्रवचन भी शौनक ने ही किया हो। वस्तुतः इस हस्तलेख का पूरा पाठ मिलाने पर ही किसी निर्णय पर १० पहुंचा जा सकता है। ५-कात्यायन (३००० विक्रम पूर्व) शुक्ल यजुर्वेद वाजसनेय प्रातिशाख्य के प्रवक्ता वेदविद्याविचक्षण .. प्राचार्य कात्यायन हैं। यह प्रातिशाख्य अनेक व्याख्यानों सहित उपलब्ध है। परिचय - इस प्रातिशाख्य के प्रवक्ता प्राचार्य कात्यायन वाजसनेय याज्ञवल्क्य के पुत्र हैं। इस कात्यायन का वर्णन हमने इसी ग्रन्थ के प्रथम भाग पृष्ठ ३२२ (च० सं०) पर वातिककार के प्रसंग में किया है । पाठक वहीं देखें। काल-याज्ञवल्क्य के साक्षात् पुत्र होने के कारण इस कात्यायन २० का काल लगभग ३०००-२६०० वि० पूर्व है। अन्य ग्रन्थ- प्राचार्य कात्यायन के नाम से अनेक ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं। कात्यायन नाम के प्राचार्य भी अनेक हैं। अतः कौनसा ग्रन्थ किस कात्यायन का है, यह कहना कठिन है । परन्तु निम्न ग्रन्थ तो अवश्य ही इसी कात्यायन के हैं__ संहिता ब्राह्मण-इस कात्यायन ने पञ्चदश वाजसनेय शाखाओं में अन्यतम कात्यायनी शाखा और उसके कात्यायन शतपथ का प्रवचन किया था। कात्यायन शतपय के प्रथम तीन काण्डों का एक हस्तलेख हमने लाहौर के लालचन्द पुस्तकालय के संग्रह में देखा था।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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