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३८२ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास ___ यह प्रातिशाख्य इस समय प्राप्त नहीं है, और इसका अन्यत्र कहीं उल्लेख भी प्राप्त नहीं होता।
अन्य काल-प्राचार्य प्राश्वलायन-प्रोक्त निम्न ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं
संहिता-ब्राह्मण -इस संहिता और ब्राह्मण के लिए पं० भगवद्दत्त ५ जी कृत 'पैदिक वाङमय का इतिहास प्रथम भाग' पृष्ठ २०३-२०६ (द्वि० सं०) तक देखना चाहिए।
पदपाठ-पाश्वलायन पदपाठ का एक हस्तलेख दयानन्द कालेज लाहौर के संग्रह में संख्या ४१३६ पर निदिष्ट है। द्र० के० वा० का
इतिहास भाग १, पृष्ठ २०६ (द्वि० सं०) । १० श्रौत-गृह्य-प्राश्वलायन श्रौत और गृह्य सूत्र प्रसिद्ध हैं।
अनुक्रमणी-पाश्वलायन अनुक्रमणी का निर्देश अथर्ववेदीय बृहत्सर्वानुक्रमणी के ११ वें पटल के प्रारम्भ में उपलब्ध होता है___ ॐ अथाथर्वणे विंशतितमकाण्डस्य सूक्तसंख्या सम्प्रदायाद्
ऋषिदेवतछन्दांस्याश्वलायनानुक्रमानुसारेणानुक्रमिष्यामः ।। १५ सामवेद की नैगेयानुक्रमणी में कोऽद्य (साम पूर्वाचिक मन्त्र सं० ३४१) के विषय में लिखा है'कायोत्याहाश्वलायनः' । नैगेयानुक्रमणी पृष्ठ १४ ।'
अर्थात्-आश्वलायन ने कोऽद्य ऋचा को कायीक-देवतावाली कहा है । यह ऋचा ऋग्वेद १।८४।१६ में भी है । अतः नैगेय अनु२० क्रमणी के प्रवक्ता ने इस ऋचा का देवता संबन्धी प्राश्वलायन-मत उसकी ऋगनुक्रमणी से ही संगृहीत किया होगा।
काल-संहिता ब्राह्मण आदि के प्रवक्ता प्राचार्य प्राश्वलायन का काल वि० पूर्व ३१००-३००० तक है। भगवान वेदव्यास ने
भारत यद्ध से पूर्व शाखाओं का प्रवचन किया था। उसके कुछ काल ५ पश्चात ही उनके शिष्यों ने स्व-स्व शाखा का प्रवचन किया। इस
प्रकार २८ वें व्यास कृष्णद्वैपायन तथा उसके शिष्य-प्रशिष्यों का शाखाप्रवचनकाल वि० पूर्व ३२००-३००० तक है।
पाश्चात्त्य विद्वानों को भ्रान्ति -बौद्ध त्रिपिटकों में प्राश्वलायन
१. श्री डा० सीताराम सहगल सम्पादित, सन् १९६६ ।