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प्रातिशाख्य प्रादि के प्रवक्ता और व्याख्याता ३८१ शाख्य व्याख्या का एक हस्तलेख निर्दिष्ट है। इसके लेखक का नाम अज्ञात है । हस्तलेख पूर्ण है।
(७) अज्ञातनाम . मद्रास राजकीय हस्तलेख-संग्रह के सूचीपत्र भाग ६, खण्ड १ के पृष्ठ ७३८१, संख्या ५३४६ पर एक ऋक्प्रातिशाख्य-व्याख्या निर्दिष्ट ५ है । इसका उदाहरण-मण्डिका नाम से संकेत है । इसी ग्रन्थ के तीन हस्तलेख ट्रिवेण्ड्रम के संग्रह में भी हैं । द्र०-सूचीपत्र भाग ५ संख्या ७, ८, ६ । यहां इनका निर्देश 'पार्षद-व्याख्या उदाहरण-मण्डिता' नाम से है। इस ग्रन्थ के लेखक का नाम तथा देश काल अज्ञात है।
(८) पशुपतिनाथ-शास्त्री पशुपतिनाथ शास्त्री ने चिन्ताहरण शर्मा के साहाय्य से उव्वटभाष्य के आधार पर ऋक्पार्षद की एक व्याख्या लिखी है।' यह 'संस्कृत साहित्य परिषद् ग्रन्थमाला कलकत्ता' से सन् १९२६ में प्रकाशित हुई है।
यह व्याख्या संक्षिप्त है। इसमें उव्वट द्वारा अस्वीकृत प्राद्य वर्गद्वय को (जिन पर विष्णमित्र की टीका छपी हैं) ग्रन्थ के अन्तर्गत स्वीकार कर लिया है । यह उचित ही किया है।
२-आश्वलायन (३००० विक्रम पूर्व) ऋग्वेद की आश्वलायन शाखा का एक प्रातिशाख्य अनन्त की २० वाजसनेय प्रातिशाख्य की टीका में निर्दिष्ट है । अनन्त का पाठ इस प्रकार है'नाप्याश्वलायनाचार्यादिकृतप्रातिशास्यसिद्धत्वम् ।' १११॥
अनन्त के इस पाठ से विदित होता है कि इस प्रातिशास्य का प्रवक्ता आश्वलायन प्राचार्य है।
२५ १. उव्वटकृतभाष्यानुसारिन्या व्याख्यया समलंकृत्य... · । मुखपष्ठ ।