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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता
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'चम्पायां न्यवसत् पूर्व वत्सानां कुलमृद्धिमत् ॥५॥ देवमित्र इति ख्यातस्तस्मिजातो महामतिः । सवै पारिषदे जेष्ठः सुतस्तस्य महात्मनः ।।६।।
नाम्ना विष्णुमित्रः स कुमार इति शस्यते ॥७।। इस परिचय के अनुसार विष्णुमित्र का अपर नाम 'कुमार' था। ५ इसके पिता का नाम देवमित्र था । देवमित्र पार्षद प्रातिशाख्य ज्ञातानों में श्रेष्ठ था। विष्णुमित्र वत्सकुल का था। यह कुछ पहले चम्पा में निवास करता था।
पाठान्तर-डा० मङ्गलदेव के संस्करण में देवमित्र का वेदमित्र और विष्णुमित्र का विष्णुपुत्र पाठान्तर उपलब्ध होते हैं। परन्तु इस १० ग्रन्थ के जो अन्य हस्तलेख हैं, उनकी अन्तिम पुष्पिका के अनुसार देवमित्र और विष्णुमित्र नाम ही प्रामाणिक हैं। .
काल-विष्णुमित्र का काल अज्ञात है। । वृत्ति का नाम-विष्णुमित्र कृत पार्षदवृत्ति का नाम ऋज्वर्था है। दक्खन कालेज के हस्तलेख संख्या ५६ का अन्त का पाठ इस । प्रकार है
'इति देवमित्राचार्यपुत्रश्रीकुमारविष्णुमित्राचार्यविरचितायाम् ऋन्वर्थायां पार्षदव्याख्यायाम् अष्टादशपटलं समाप्तम् ।'
इस हस्तलेख का लेखन-काल शक सं० १५६२=वि० संवत् १६६७ है।
विशेष-इस हस्तलेख के पत्रा ८६ ख तथा कुछ अन्य पटलों के अन्त में व्याख्याकार वज्रट पुत्र उव्वट का नाम मिलता है। सम्भव है लिपिकार को जिन अंशों पर विष्णमित्र का ग्रन्थ न मिला होगा, वहां उसने उव्वट व्याख्या को लिखकर ग्रन्थ को पूरा किया होगा।
इस ग्रन्थ के प्रकाशित होने की महती आवश्यकता है । इस वृत्ति २५ से अनेक रहस्यों के प्रकट होने की सम्भावना है। .. (४) उव्वट (सं० ११०० वि० के समीप) :
उब्वट ने ऋक्प्रातिशाख्य का भाष्य नाम से व्याख्यान किया है। इसका भाष्य अनेक स्थानों से प्रकाशित हो चुका है। इसमें डा०