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२/४८ प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता
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थर्व की शौनक संहिता, अथर्व प्रातिशाख्य बृहद्देवता, ऋग्वेद के ऋषि-देवता छन्द- अनुवाक आदि से सम्बद्ध दश अनुक्रमणियां और शौनकी शिक्षा प्रसिद्ध हैं । वैदिकेतर वाङ् मय में ज्योतिष शास्त्र और चिकित्सा शास्त्र आदि का प्रवचन किया था ।
ज्योतिष सम्बन्धी शौनक संहिता का उल्लेख शंकर बालकृष्ण ५ दीक्षित ने 'भारतीय ज्योतिष शास्त्राचा इतिहास' के पृष्ठ ४७५ में किया है और पृष्ठ १८६,४८२ टि०, ४८७ में शौनक-मत का निर्देश मिलता है । चिकित्साशास्त्र सम्वन्धी शौनक संहिता का उल्लेख वाग्भट्ट ने प्रधीते शौनकः पुनः (अष्टाङ्ग - हृदय कल्पस्थान ६।१५) में किया है। इस पर सर्वाङ्गसुन्दरा टीका में शौनकस्तु तन्त्रकृदधीते- १० एवं पठति ... ............। लिखकर शौनक का पाठ उद्धृत किया है । शौनकपुत्र शौनक किसी व्याकरणशास्त्र का प्रवक्ता था । इसके विषय में इस ग्रन्थ के अ० ३, भाग १, पृष्ठ १४१-१४२ ( च० सं०) पर लिख चुके हैं ।
व्याख्याकार
(१) भाष्यकार
ऋक्पार्षद के वृत्तिकार विष्णुमित्र ने स्ववृत्ति के आरम्भ में लिखा है
'सूत्रभाष्यकृतः सर्वान् प्रणम्य शिरसा शुचिः ।'
दक्खन कालेज के संग्रह में वर्तमान हस्तलेख (सं० ५५.) का पाठ इस प्रकार है
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'तन्त्रभाष्यविदः सर्वान् प्रणम्य प्रयतः शुचिः । '
दोनों पाठों में से मूलपाठ कोई भी हो. दोनों से एक ही बात स्पष्ट है कि ऋक्पार्षद पर किसी प्राचार्य ने कोई भाष्य - प्रन्थ लिखा था ।
इस भाष्य के विषय में इससे अधिक हम कुछ नहीं जानते ।
(२) आत्रेय
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विष्णुमित्र की पार्षद-वृत्ति के आरम्भ के द्वितीय श्लोक का दक्खन कालेज के हस्तलेख का पाठ इस प्रकार है-
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