SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास इस लेख से स्पष्ट है कि उसके पार्षद में इति वर्णराशिकमश्च (वर्गद्वय १०), और अष्टौ समानाक्षराण्यादितः सूत्रों के मध्य में कोई व्यवधायक वचन नहीं था। विष्णुमित्र-व्याख्यात वर्गद्वय पार्षद के प्रङ्ग-विष्णु मित्र द्वारा ५ व्याख्यात वर्गद्वय ऋक्प्रातिशाख्य के अवयव हैं। इनमें निर्दिष्ट वर्ण सामाम्नाय अथवा वर्ग-क्रम का उपदेश किये विना ऋप्रातिशाख्य के उत्तरवर्ती कई सूत्रों का प्रवचन ही नहीं हो सकता । उव्वट, जो कि इस वर्गद्वय को प्रातिशाख्य का अवयव नहीं मानता। उसके सम्मुख यह भयङ्कर'बाधा उपस्थित हई कि प्रष्टौ समानाक्षराण्यादितः आदि । सूत्रों में किस क्रम से वर्गों की गिनती की जाए ? वह स्वयं लिखता __ 'नन कथं वर्णसमाम्नायामनुपदिश्यैव अष्टौ समानाक्षराण्यादित (११) इति । उपदिष्टस्य हि व्यपदेश एवमुपपद्यते प्रादित इति, नानुपदिष्टस्य । तथा-चत्वारि संध्यक्षराण्युत्तराणि (१।२) इत्युत्तरव्यपदेशो नैव घटते, पृष्ठ २५ । अर्थात् -अक्षर समाम्य का उपदेश किए विना सूत्रों में प्रादितः तथा उत्तराणि निर्देश उपपन्न नहीं हो सकता । इस शंका को उपस्थित करके उसने अत्यन्त क्लिष्ट कल्पनाएं की हैं । यथा२० १-प्राचार्यप्रवृत्त्या क्रमोऽन्यथाऽनुमोयते । पृष्ठ २५ । २-सोऽयमाचार्यप्रवृत्त्या पाठक्रमोऽनुमीयमानो लौकिकवर्णसमाम्नायस्य द्विधापाठं गमयति । पृष्ठ २६ । अर्थात्-प्राचार्य की प्रवृत्ति से लौकिक क्रम से भिन्न वर्णसमाम्नाय क्रम का अनुमान होता है । प्राचार्य की प्रवृत्ति से अनुमीयमान पाठक्रम बतलाता है कि लौकिक वर्णसमाम्नाय का दो प्रकार का क्रम था। उव्वट को ये क्लिष्ट कल्पनाएं इसलिये करनी पड़ों कि उसे विष्णु मित्र विरचित वर्गद्वयवृत्ति का ज्ञान नहीं था। शौनक के अन्य ग्रन्य -प्राचार्य शौनक ने ऋत्रातिशाख्य के ३० अतिरिक्त अनेक ग्रन्थों का प्रवचन किया था। वैदिक वाङमय में
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy