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प्रातिशाख्य आदि के प्रवक्ता और व्याख्याता
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' ऐन्द्र सम्प्रदाय की कातन्त्रीय कतिपय संज्ञाएं प्रातिशाख्यों में उपलब्ध हो जाती हैं एतावता प्रातिशाख्यों को ऐन्द्र सम्प्रदाय का मानना भी हमारे विचार से उचित नहीं है। हां, यदि कभी ऐन्द्र तन्त्र उपलब्ध हो जावे, वा उसके दो चार सौ सूत्र वा मत उद्धृत मिल जावें, तब इस समस्या का अन्तिम रूप से निर्णय हो सकता है। ५. . अब हम वेद क्रम से प्रातिशाख्यों के सम्बन्ध में लिखते हैं
ऋग्वेद के प्रातिशाख्य ऋग्वेद के पांच चरणों के पांच प्रातिशाख्यों में से सम्प्रति एक प्रातिशाख्य ही उपलब्ध है। इसका संबन्ध शाकल चरण की संहिताओं के साथ है । अन्य प्राश्वलायन, बाष्कल, शाङ्कायन प्रातिशाख्य केवल १० नाम मात्र से विज्ञात हैं । यतः सम्प्रति ऋग्वेद-सम्बन्धी एक ही प्रातिशाख्य उपलब्ध है, अतः इसके लिये लोक में सामान्यरूप से ऋक्प्रातिशाख्य शब्द का ही व्यवहार होता है।
१-शौनक (३००० वि० पूर्व) आचार्य शौनक ने ऋग्वेद के शाकल चरण की शाखामों से संबद्ध । एक प्रातिशाख्य का प्रवचन किया है। यह सम्प्रति ऋक्पार्षद अथवा ऋक्प्रातिशाख्य नाम से प्रसिद्ध है।
प्रवक्ता-सम्प्रति उपलब्ध ऋक्प्रातिशाख्य का प्रवक्ता कुलपति = गृहपति' प्राचार्य शौनक है। इन्हें बढसिंह भी कहा जाता है। इस प्रातिशाख्य का शौनक प्रवक्तृत्व इसकी अन्तरङ्ग परीक्षा से भी २० स्पष्ट है । इस पार्षद के प्राचीन वृत्तिकार विष्णुमित्र ने अपनी वृत्ति .. के प्रारम्भ में लिखा है'तस्मादादौ तावच्छास्त्रावतार उच्यते
शौनको गृहपतिर्वे नैमिषीयैस्तु दीक्षितैः ।
दीक्षासु चोदितः प्राह ससत्रे तु द्वादशाहिके। इति शास्त्रावतारं स्मरन्ति ।'
१. प्राचीन परिभाषा के अनुसार जो प्राचार्य १० सहस्र विद्यार्थियों का अन्न वस्त्र से भरण पोषण करता है, वह कुलपति अथवा गृहपति कहाता है ।