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________________ ३६८ संस्कृत-व्याकरण-शास्त्र का इतिहास se मिलता है । पदपाठ के पश्चात् पढ़े जाने वाले' क्रमपाठ के नियमों का भी सामान्य रूप से उल्लेख मिलता है। तैत्तिरीय प्रातिशाख्य में वेद के जटापाठ का भी विवेचन उपलब्ध होता है। साम का प्रातिशाख्य फुल्लसूत्र अथवा पुष्पसूत्र के नाम से प्रसिद्ध है । यह प्रातिशाख्य अन्य प्रातिशाख्यों से विलक्षण है। इसमें सामगान में होनेवाले वर्णविकारों वा स्तोभों का निर्देश है। सम्भवतः इसका कारण साम से सम्बद्ध होना ही है। सामवेद के ऋक्पाठ में होनेवाले साहितिक वर्णविकार आदि का निर्देश 'ऋक्तन्त्र' नामक ग्रन्थ में मिलता है। अन्य प्रातिशाख्यों १० की वैषयिक तुलना से यह प्रातिशाख्य कहा जा सकता है, पर प्राचीन प्राचार्यों ने इसको,प्रातिशाख्य नाम से स्मरण नहीं किया है। साम प्रातिशाख्य के रूप में फुल्ल सूत्र वा पुष्पसूत्र ही समादृत है। इसी दृष्टि से हमने इस ग्रन्थ के द्वितीय अध्याय में प्रातिशाख्यों का उल्लेख करके पृष्ठ ७३-७४ (च० सं०)पर 'अन्य वैदिक व्याकरण' १५ इस उपशोषक के अन्तर्गत ऋक्तन्त्र का तथा एतत्सत कतिपय अन्य ग्रन्थों का निर्देश किया है। डा० सत्यकाम भारद्वाज, जिन्हें भारतीय परमरा का गहरा ज्ञान नहीं, और हवाई घोड़े पर चढ़कर अपने नूतन अनुसन्धान को प्रकट करने में विशेष रुचि है अनेक असम्बद्ध कल्पनाएं करते हैं। है. उन्होंने अपने संस्कृत व्याकरण का उद्भव और विकास' ग्रन्थ (पष्ठ ६३) में लिखा है 'मीमांसक ने इन पूर्वोक्त ऋक्तन्त्र, अक्षरतन्त्र, सामतन्त्र, अथर्व चतुरध्यायी (शौनकीय), और प्रतिज्ञासूत्रादि को 'अन्य वैदिक व्या करण' नाम से एक पृथक् शीर्षक के आधीन रखा है। उनकी दष्टि में स प्रातिशाख्यों और इन तन्त्रपन्थों में रचनागत दृष्टि से कुछ अन्तर १. द्र०-अध्ययनतोऽविप्रकृष्ठाख्यानाम् । अष्टाध्यायी २।४।५ का प्रसिद्ध उदाहरण ‘पदक्रपकम्' (काशिका)। २. तैत्तिरीय प्रातिशाख्य मैसूर सं० की कतरिरङ्गाचार्य लिखित भूमिका पृष्ठ ६-१३।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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