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________________ १४ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास नैरुक्त आचार्य और वैयाकरणों में शाकटायन सभी नाम शब्दों को घातुज मानते हैं। वर्तमान पञ्चपादो उणादिसूत्र शाकटायन-प्रोक्त हैं, यह महाभाष्यकार के किसी भी पद से इङ्गित नहीं होता। पाणिनि से पूर्ववर्ती अनेक वैयाकरणों ने उणादिसूत्रों का प्रवचन किया ५ था। पूर्व प्राचार्यों की परम्परा के अनुसार पाणिनि ने भी खिलपाठ के रूप में उणादिसूत्रों का प्रवचन किया। पाणिनि से उत्तरवर्ती वैयाकरणों ने भी उणादि-प्रवचन द्वारा प्राचीन परम्परा को अद्ययावत् अक्षुण्ण बनाए रखो। प्रोणादिक शब्दों के विषय में पाणिनीय मत-यद्यपि भगवान् १० पाणिनि ने रूढ शब्दों के यौगिकत्व (धातुजत्व) पक्ष को सुरक्षित रखने के लिये प्राचीन वैयाकरण-परम्परा के अनुसार उणादिसूत्रों का पथक प्रवचन किया, तथापि वे वृक्षादि शब्दों का रूढ मानते हए भी उन्हें सर्वथा अव्युत्पन्न नहीं मानते थे। अतएव पाणिनि ने आचार्य शन्तनु के समान अव्युत्पन्न प्रातिपदिकों के स्वर-ज्ञान के लिये प्राति१५ पदिक स्वरबोधक लक्षणों का निर्देश नहीं किया । यदि वे उन्हें सर्वथा अव्यत्पन्न मानते, तो वे भी प्राचार्य शन्तनु के फिट-सूत्रों के समान प्रातिपदिक-स्वर के बोधक लक्षणों की रचना करते। - कात्यायन और पतञ्जलि ने रूढ शब्दों को धातुज मानने पर जहां शास्त्रीय दोष उपस्थित होता था, वहां उसकी निवृत्ति के लिये २० पक्षान्तरैरपि परिहारा भवन्ति (ऋलुक, सूत्र-भाष्य) न्यायानुसार लिखा है प्रातिपदिकविज्ञानाच्च भगवतः पाणिनेः सिद्धम् । प्रातिपदिकविज्ञानाच्च भगवतः पाणिनेराचार्यस्य सिद्धम् । उणादयोऽव्युत्पन्नानि प्रातिपदिकानि । महा० ७१॥२॥ २५ अर्थात्- [अखण्ड] प्रातिपदिक मानने से पाणिनि प्राचार्य के मत में सिद्ध है । उणादि [निष्पन्न] शब्द अव्युत्पन्न प्रातिपदिक हैं। ___ौणादिक शब्दों के विषय में स्वामी दयानन्द सरस्वती का मत-समस्त वैयाकरण सम्प्रदाय में प्राचार्य शाकटायन के अनन्तर १. इस विषय पर पविक इसी ग्रन्थ में आगे उगादि प्रकरण में लिखेंगे। २. प्रक्रियासर्वस्व, उणादि-प्रकरण ११४०, पृष्ठ १०, मद्रास संस्करण नारायण-वृत्ति ।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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