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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
दादीनाम् एक सूत्र है, और वावादोनामु भावुदात्तौ दूसरा पाठ है। प्रतीत होता है कि दानों सूत्रों के प्रारम्भ में सादृश्य होने से लेखक प्रमाद से वावादीनाम् प्रथम सूत्र नष्ट हो गया।
३-अज्ञातनाम ५ संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी के सरस्वती भवन के संग्रह में फिट्सूत्रवृत्ति का हस्तलेख विद्यमान है। इसे हमने सन् १९३४ में देखा था । यह उस समय संग्रह संख्या ६ के वेष्टन संख्या २५ में रखा हुआ था।
४-विठ्ठल (सं० १५२० वि०) १० विठ्ठल ने प्रक्रियाकमुदी की टीका के स्वरप्रकरण में फिट सूत्रों
की भी संक्षिप्त व्याख्या की है।
विठठल के परिचय के लिए देखिए इस ग्रन्थ का प्रथम भाग, पृष्ठ ५९२ (च० सं०) ।
५-भट्ठोजि दीक्षित (सं० १५७०-१६५० वि०) १५ भट्टोजि दीक्षित ने फिटसूत्रों पर दो व्याख्याएं लिखी हैं । एक
शब्दकौस्तुभ के प्रथमाध्याय के द्वितीय पाद के स्वरप्रकरण में, और दूसरी सिद्धान्तकौमुदी की स्वरप्रक्रिया में। दोनों में साधारण ही भेद है।
व्याख्याकार २० १. भट्टोजि दीक्षित-भट्टोजिदीक्षित ने सिद्धान्तकौमुदीस्थ
फिटसूत्रवृत्ति की स्वयं व्याख्या प्रौढ मनोरमा में की है। परन्तु वहां केवल ७-८ सूत्रों पर ही विचार किया है।
२. जयकृष्ण-जयकृष्ण ने सिद्धान्तकौमुदी के स्वर वैदिक भाग की सून्दर व्याख्या लिखी है। इसी के अन्तर्गत उसने फिटसूत्रों की २५ भट्टोजि दीक्षित विरचित वृति को व्याख्या को है।
परिचय -जयकृष्ण ने स्वरवैदिकप्रक्रिया के श्रादि और अन्त में जो परिचय दिया है, उससे इतना जाना जाता है कि इसके पितामह का नाम गोवर्धन, और पिता का नाम रघुनाथ था। रघुनाथ के चार