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________________ फिट्सूत्रों का प्रवक्ता और व्याख्याता ३५७ १-अज्ञातनाम एक अज्ञातनाम वैयाकरण की वृत्ति अडियार के हस्तलेख-संग्रह । में विद्यमान है । इसका उल्लेख हम पूर्व (पृष्ठ ३५४, यही भाग) कर चुके हैं। इस वृत्ति का जो अंश अडियार पुस्तकालय के सूचीपत्र में ५ निदर्शनार्थ छपा है । उसका पाठ जर्मनमुद्रित वृत्ति के पाठ से प्रायः समानता रखता है इस समानता के कारण दोनों वृत्तियों के पूरे पाठ की तुलना किये विना यह कहना कठिन है कि ये दोनों वृत्तियां एक हैं, अथवा भिन्न-भिन्न । २-अज्ञातनाम एक अज्ञातनाम वैयाकरण की वृत्ति चिरकाल पूर्व जर्मन से प्रकाशित हुई थी। इसके लेखक का नाम काल और देश अज्ञात है। __ पाठभेद-इस वृत्ति में सिद्धान्तकौमुदी में प्राश्रीयमाण फिटसूत्र पाठ से अनेक स्थानों पर पाठभेद तथा सूत्रभेद उपलब्ध होता हैं। सूत्रभेद यथा- . . . ____ क-पृष्ठस्य च (१५) सूत्र के आगे वा भाषायाम् सूत्र अधिक उपलब्ध होता है। परन्तु यह सिद्धान्तकौमुदी (लाहौर संस्करण) का मुद्रण दोष है। उसमें यह सूत्र १५ वें सूत्र की वृत्ति के साथ ही छप गया है। ___ ख-सिद्धान्तकौमुदी में यथेति पादान्ते सूत्र के आगे उपलभ्यमान २० प्रकारादिद्विरुक्तौ परस्यान्त उदात्तः, शेषं सर्वमनुदात्तम् ये दो सूत्र इस वृत्ति में नहीं हैं । हो सकता है कि जिस हस्तलेख के आधार पर जर्मन संस्करण छपा हो, उसमें ये दो सूत्र त्रुटित हों।. . .. ग-सिद्धान्तकौमुदी में वावादीनामुभावुदात्तौ पाठ को एकसूत्र माना है। नागेश ने बावादीनामुभी इतना ही सूत्र माना है। और २५ उवात्तौ अंश को अनुवृत्त्यंश कहा है। जर्मन संस्करण में पाठ इस प्रकार है- 'वावदादीनाम् । वावदादीनामन्त उदात्तो भवति । वावत् । वावादीनानुभावुदात्तौ । बावावीनामुभावदात्तौ भवतः। वाव ।' , इस पाठ से प्रतीत होता है कि इस वृत्तिकार के मत में वाव- ३० ,
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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