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________________ ३५६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास न्यासकार के उक्त उदाहरण से एक बात और स्पष्ट होती है कि पूर्वाचार्य गणपाठ में शब्दों के स्वर-विशेष का भी विधान करते थे। काशिका में सर्वादिगण में त्व त्वत् तथा स्वरादिगण में स्वर् पुनर् सनुतर् आदि शब्दों के स्वरों का निर्देश मिलता है । वह या तो किसी प्राचीन गणपाठ के स्वर-निर्देश के अनुसार है, अथवा पाणिनि के गणपाठ में भी इनके स्वरनिर्देशक गणसत्र रहे हों, और उनका व्याख्याग्रन्थों के हस्तलेखों में लोप हो गया हो। हमारे विचार में द्वितीय पक्ष अधिक युक्त है। अर्थात् पाणिनि ने भी पूर्वाचार्यों के सदृश अपने गणपाठ में विशिष्ट शब्दों के स्वर-निर्देशक सूत्रों का प्रवचन १० किया था, सम्प्रति जो लुप्त हो गया है। ८. प्राचार्य शान्तनव'-प्रोक्त उणादि और लिङ्गानुशासनसूत्रों का उल्लेख हम पूर्व प्रकरणों में यथास्थान कर चुके हैं । जिस आचार्य ने उणादिपाठ और लिङ्गानुशासन का प्रवचन किया हो, उसने व्या करण के नाम पर इतना छोटा सा ही ग्रन्थ रचा हो, यह बुद्धिगम्य १५ नहीं हो सकता। ____ इन सब हेतुओं से यह अति स्पष्ट है कि प्राचार्य शान्तनव ने किसी साङ्गोपाङ्ग बृहत् शब्दानुशासन का प्रवचन किया था। और उसी में व्युत्पन्न-पक्षानुसार प्रातिपदिकों का स्वर-निर्देश करके अव्यूत्पन्न पक्ष का आश्रय करके अखण्ड प्रातिपदिकों के स्वर-परिज्ञान के लिए इन सूत्रों की रचना की थी। फिट्सूत्रों का पाठ-सम्प्रति फिटसूत्रों की जितनी भी वृत्तियां उपलब्ध हैं,उनमें अनेक सूत्रों में पाठभेद उपलब्ध होता है । नागेश ने लघु और बृहत् शब्देन्दुशेखरों में अनेक पाठान्तरों का निर्देश किया है। वृत्तिकार २५ अब हम फिटसूत्रों की उपलब्ध अथवा ज्ञात वृत्तियों के रचयि ताओं का वर्णन करते हैं १. इसी भाग में पूर्व पृष्ठ १४८, २०७, २७४ पर शन्तनु प्रोक्त गणपाठ, उणादिपाठ और लिङ्गानुशासन का निर्देश किया है । वहां भी शन्तनु के स्थान में शान्तनव पाठ होना चाहिये।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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