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फिट सूत्रों का प्रवक्ता और व्याख्याता
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इसकी टिप्पणी में एफ. कीलहान का प्रमाण दिया है। द्रष्टव्यः 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' भाषानुवाद, पृष्ठ ५१० ।
कीथ ने यहां जो भूल की है वह है । फिटसूत्रों को पतञ्जलि से परवर्ती मानना है। हम ऊार स्पष्ट बता चुके हैं कि पतञ्जलि फिटसूत्रों से केवल परिचित ही नहीं है, अपितु वह उनको अर्थतः तथा साक्षात् पाठरूप में उद्धृत भी करता है। इसलिए कीथ का फिटसूत्रों को पतञ्जलि से परवर्ती मानना महती भूल है। यदि उसने उक्त निर्देश कीलहान के लेख के आधार पर किया है, तो यह कीलहान की भी भूल है।
हमने ऊपर जो प्रमाण दर्शाए हैं. उनके अनुसार तो फिट सूत्र न केवल पतञ्जलि से पूर्ववर्ती हैं, अपितु पाणिनि और आपिशलि से भी पूर्ववर्ती हैं।
नामकरण का कारण-इन चतुःपादात्मक शान्तनव सूत्रों के फिटसूत्र नाम का कारण, इनका प्रथम फिष सूत्र है। पाणिनीय शास्त्र में जिन अर्थवान् शब्दों की प्रातिपदिक संज्ञा होती है, उन्हीं की १५ शान्तनव तन्त्र में फिष संज्ञा थी। फिष का ही प्रथमैकवचन तथा पूर्वपद में फिट रूप है। इसी फिष् संज्ञा के कारण ये सूत्र फिटसूत्र नाम से व्यवहृत होते हैं।
फिटसूत्र बृहत्तन्त्र के एकदेश-सम्प्रति उपलभ्यमान चतुःपादात्मक फिटसूत्र स्वतन्त्र तन्त्र नहीं है । यह किसी बृहत्तन्त्र का बचा है. हुआ एकदेश है । इसमें निम्न प्रमाण हैं
१. फिटसूत्रों में कई ऐसी संज्ञाएं प्रयुक्त हैं, जिनका सांकेतिक अर्थ बतानेवाले संज्ञासूत्र इन उपलब्ध सूत्रों में नहीं हैं। अप्रसिद्ध एवं कृत्रिम संज्ञाओं का प्रयोग करने से पूर्व उनसे संबद्ध निर्देशक सूत्रों की आवश्यकता होती है । ऐसी अप्रसिद्धार्थ निम्न संज्ञाएं इन सूत्रों २५ में प्रयुक्त हैं यथा
क–फिष् (सूत्र १)-प्रातिपदिक। ख-नप् (सूत्र २६, ६१) =नपुंसक। .. ग-यमन्वा (सूत्र ४१) =वृद्ध (पाणिनीयानुसार) ।