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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
वस्तुतः यह मत चिन्त्य है। फिटसूत्र पाणिनि से पूर्ववर्ती हैं, इस विषय में प्राचार्य चन्द्रगोमी का निम्न वचन द्रष्टव्य है
'एष प्रत्याहारः पूर्वव्याकरणेष्वपि स्थितः एव । अयं तु विशेषःऐपौष यदासीत् तद ऐौच इति कृतम् । तथाहि-लघावन्ते द्वयोश्च ५ बह्वषो गुरुः (फिट २।६) तृणधान्यानां च द्वयषाम् (फिट २।४) इति पठ्यते।' प्रत्याहारसूत्रों की व्याख्या के अन्त में।
अर्थात् –यह प्रत्याहार पूर्व व्याकरणों में विद्यमान था। केवल इतना विशेष है कि पहले ऐौष् सूत्र था, उसे ऐौच कर दिया।
इसीलिए लघावन्ते और तृणधान्यानां फिटसूत्रों में अच् के स्थान में १० अष् का निर्देश उपलब्ध होता है ।
चन्द्रगोमी के इस निर्देश से स्पष्ट है कि पाणिनीय अच् प्रत्याहार के स्थान में अष् प्रत्याहार का प्रयोग करनेवाला फिट्सूत्रप्रवक्ता पाणिनि से पूर्ववर्ती है।'
४. प्रापिशलि से पूर्वतन-आपिशल व्याकरण में भी पाणिनि १५ के समान ऐौच सूत्र और अच् प्रत्याहार का निर्देश था। अतः अष्
प्रत्याहार का निर्देश करनेवाले फिटसूत्र प्रापिशलि से पूर्ववर्ती ही हो सकते हैं, उत्तरवर्ती कथमपि सम्भव नहीं। ___ इन प्रमाणों से सिद्ध है कि फिटसूत्रों का प्रवचनकाल विक्रम से निश्चय ही ३१०० वर्ष पूर्वतन है।
कीथ की भूल-कीथ ने अपने 'संस्कृत साहित्य का इतिहास' ग्रन्थ में फिट्सूत्रों के सम्बन्ध में लिखा है
'वैदिक तथा लौकिक संस्कृत के संबन्ध में स्वरों के नियमों का निरूपण शान्तनव ने, जो पतञ्जलि से परवर्ती हैं, फिटसूत्र में किया है।'
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१. हमारे मित्र प्रो० कपिलदेव साहित्याचार्य ने भी चान्द्रवृत्ति के उक्त पाठ को उद्धृत करके फिटसूत्रों को पाणिनि से पूर्ववर्ती माना है। द्र०'संस्कृत व्याकरण में गणपाठ की परम्परा और प्राचार्य पाणिनि' पृष्ठ २६ । इस ग्रन्थ को हमने 'भारतीय-प्राच्यविद्या-प्रतिष्ठान' की ओर से प्रकाशित किया है।