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________________ फिट् सूत्र का प्रवक्ता और व्याख्याता ३५१ माधुदात्तश्च (३।१।३) सूत्र का इदं पुनरस्ति प्रत्ययस्यायुदात्तो भवतीति रूप में किया है। ___हु-स्वरितकरणसामर्थ्यान्न भविष्यति-न्यङ्स्वरौ स्वरितो इति । १।२।३॥ इस उद्धरण में पतञ्जलि ने साक्षात् न्यस्वरौ स्वरितौ इस ५ फिट्सूत्र का निर्देश किया है। इन उद्धरणों से इतना स्पष्ट है कि ये शान्तनव फिटसूत्र महाभाष्यकार पतञ्जलि से पूर्ववर्ती हैं, और पाणिनीय वैयाकरणों द्वारा आदृत हैं। २. कात्यायन से पूर्वभावी-वार्तिककार कात्यायन ने ६ । १। १० १५८ पर वार्तिक पढ़ा है- . 'प्रकृतिप्रत्यययोः स्वरस्य सावकाशत्वाद् असिद्धिः।' इस वार्तिक की व्याख्या में वार्तिककार द्वारा संकेतित प्रत्ययस्वर की सावकाशता दर्शाने के लिए भाष्यकार ने लिखा है 'प्रत्ययस्वरस्य अवकाशो यत्रानुदासा प्रकृतिः-समत्वम्, १५ सिमत्वम्।' ___ यहां सम सिम शब्दों को सर्वानुदात्त मानकर ही वार्तिककार ने . प्रत्ययस्वर को सावकाश कहा है। यह सम सिम का सर्वानुदात्तत्व त्वसमसिमेत्यनुच्चानि फिटसूत्र से ही सम्भव है । अतः स्पष्ट है कि उक्त वार्तिक का प्रवचन करते समय वातिककार के हृदय में त्वसम- २० सिमेत्यनुच्चानि सूत्र अवश्य विद्यमान था। इसलिए ये फिटसूत्र वार्तिककार कात्यायन से भी पूर्ववर्ती हैं, यह सर्वथा व्यक्त है। . ३. पाणिनि से पौर्वकालिक-नागेश ने ६।१।१५८ के प्रदीपोद्योत . में पक्षान्तर के रूप में लिखा है 'यद्वा फिटसूत्राणि पाणिन्यपेक्षया आधुनिककर्तृकाणीति।' २५ अर्थात्- फिटसूत्र पाणिनि से अर्वाचीन हैं। १. इस उल्लेख से यह भी स्पष्ट है कि जहां पर व्युत्पत्ति पक्ष में पाणिनीय सामान्य सूत्र से अन्यथा स्वर प्राप्त हो और फिटसूत्र से अन्य, वहां फिट्सूत्रों में कण्ठतः पठित शब्दस्वर बलवान होता है। समत्वमा
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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