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३५० संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास को माना था। अब अनेक प्रमाणों की उपस्थिति में हमारा विवार वदल गया है।
फिट-सूत्रों का प्रवचनकाल-अब हम फिट्सत्रों के प्रवचनकाल पर उपलब्ध सामग्री के आधार पर विचार करते हैं
१. पतञ्जलि से पूर्ववर्ती-महाभाष्य में अनेक ऐसे स्थल हैं, जिनसे विदित होता है कि फिटसूत्र पतञ्जलि से पूर्ववर्ती हैं । यथा__क-प्रत्ययस्वरस्यावकाशो यत्रानुदात्ता प्रकृतिः-समत्वं सिमत्वम् । ६ । १ । १५८ ।।
यहां भाष्यकार ने सम सिम प्रातिपदिकों के सर्वानुदात्तत्व का १० निर्देश किया है । यह सर्वानुदात्तत्व त्वसमसिमेत्य नुच्चानि फिटसूत्र
से ही सम्भव है। पाणिनीय शास्त्र में इनके सर्वानुदात्तत्व का विधायक कोई लक्षण नहीं है। ___ख-यदि पूर्वपदप्रकृतिस्वरत्वं समासान्तोदात्तत्वं बाघते-चप्रियः वाप्रियः इत्यत्रापि बाधेत । ६ । २।१॥
यहां भाष्यकार ने च वा शब्दों के अनुदात्तत्व की ओर संकेत किया है । च वा का अनुदात्तत्व चादयोऽनुदात्ताः इस फिट्सूत्र से ही सम्भव है।'
ग-प्रातिपदिकस्वरस्यावकाशः-पाम्रः, शाला । ६ । १ । ६१॥
यहां पतञ्जलि ने फिटसूत्रों के प्रथम सामान्य अन्तोदात्तत्व२० विधायक फिषः सूत्र की ओर संकेत किया है।
घ-इदं पुनरस्ति प्रातिपदिकस्यान्तोदात्तो भवतीति । सोऽसौ लक्षणेनान्तोदात्तः"""।६।१।१२३॥
यहां भाष्यकार ने स्पष्ट ही फिषोऽन्तोदात्तः का अर्थतः अनुवाद किया है । ऐसा हो अर्थतः अनुवाद इसी सूत्र के भाष्य में पाणिनीय २५ १. द्र०—महाभाष्य-प्रदीप-'चादयोऽनुदात्ता:'इति च वा शब्दावनुदात्तो। ६।२।१॥
२. फिट-सूत्रों में सम्प्रति प्रथम सूत्र 'फिषोऽन्तोदात्त:' इस प्रकार पढ़ा जाता है। परन्तु इसमें 'अन्तोदात्तः' अनुवर्त्यमान पद है। मूल सूत्र केवल 'फिष.' इतना ही है । इसकी विवेचना आगे की जायगी।