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संस्कृत व्याकरण - शास्त्र का इतिहास
इति शान्तनवाचार्य प्रणीतानि फिटसूत्राणि फिट्सूत्रेषु तुरीयः
पादः ॥
इसकी व्याख्या में नागेश बृहच्छब्देन्दुशेखर में लिखता है - इति शान्तनवेति । इदं च 'मात्रोपज्ञ' इति हरदत्त ग्रन्थे ( पद० ५ ६ |२०१४ ) स्पष्टम् । शन्तनुराचार्यः प्रणेतेति द्वारादीनां च ( ७|३|४)
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इति सूत्रे हरदत्तः । भाग ३, पृष्ठ २२५१ ।
ऐसा ही नागेश ने लघुशब्देन्दुशेखर (भाग ३, पृष्ठ ६८४-९८५) में लिखा है ।
यहां नागेश ने हरदत्त के दोनों पाठों का निर्देश कर दिया है, १० जिनमें फिट् सूत्रों का प्रवक्ता 'शान्तनव' और 'शन्तनु' का निर्देश है । परन्तु स्वमत का प्रतिपादन नहीं किया ।
इस पर लघुशन्देन्दुशेखर के टीकाकार भैरव मिश्र ने लिखा हैशान्तनवाचार्यप्रणीतेषु सूत्रेष्विति दर्शनेन शन्तनोराचार्यस्य यदपत्यं प्रणेतृत्वमिति भ्रमनिवारणाय श्राह - इदं मात्र इति । तथा च १५ शन्तनुशब्दात् तेन प्रोक्तम् (४।३।१०१ ) इत्यण् । तदन्तस्य आचार्य - प्रणीतशब्देन कर्मधारयः । श्राचार्यश्च शन्तनुरेवेत्यर्थाल्लभ्यते । भाग २, पृष्ठ ८४-६८५ ।
इसका भाव यह है कि - 'शान्तनवाचार्य प्रणीतेषु' इस दर्शन से शन्तनु आचार्य का जो पुत्र उसके द्वारा प्रणीत, इस भ्रम के निवारण २० के लिए कहा है - इदं मात्र इति । इस प्रकार शन्तनु शब्द से तेन प्रोक्तम् ग्रर्थ में प्रण शान्तनव । उस प्रणन्त का आचार्य प्रणीत शब्द से कमधारय समास [ शान्तनवं चाचार्यप्रणीतं च ] । इस प्रकार शन्तनु ही अर्थ से प्राप्त होता है ।
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भैरव मिश्र की भूल - भैरव मिश्र ने शन्तनु से प्रोक्त शान्तनव २५ ( सूत्र ) का प्राचार्यप्रणीत शब्द से कर्मधारय समास कहा है । प्राचार्य प्रणीत शब्द में तृतीया तत्पुरुष समास होगा । आचार्य शब्द सम्बन्ध वाचक है उसे सम्बन्धी की आकांक्षा होने से सापेक्षमसमर्थं भवति नियम से असमर्थ प्राचार्य पद का प्रणीत शब्द के साथ समास ही नहीं होगा । अतः भैरव मिश्र का व्याख्यान शुद्ध है |
भैरव मिश्र ने हरदत्त के दोनों स्थलों के पाठ नहीं देखे । श्रन्यथा