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संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
. हातकार
वृत्तिकार-रामचन्द्र विद्याभूषण - मुग्धबोध से सम्बद्ध परिभाषात्रों की एक वृत्ति रामचन्द्र विद्याभूषण ने लिखी थी। डा० वेल्वाल्कर ने व्याख्याकार का नाम राम
चन्द्र तर्कवागीश लिखा है।' इस वृत्ति का रचनाकाल सं० १७४५ ५ वि. (शक १६१०) है। इस वृत्ति का निर्देश म. म. हरप्रसाद
शास्त्री द्वारा सम्पादित 'गवर्नमेण्ट आफ बंगाल' द्वारा प्रकाशित हस्तलेख सूचीपत्र भाग १. पृष्ठ २१६, ग्रन्थाङ्क २२२ पर निर्दिष्ट है। उक्त लेखनकाल इस सूचीपत्र में उल्लिखित है। डा. वेल्वालकर ने भी यही काल स्वीकार किया है।'
११-पद्मनाभदत्त (सं० १४०० वि०) पद्मनाभदत्त ने स्वीय सुपद्म व्याकरण से सम्बद्ध परिभाषापाठ का ग्रन्थन किया था, और उस पर स्वयं वृत्ति भी लिखी थी। पद्यनाभदत्त ने इस वृत्ति के अन्त में स्वविरचित प्रायः सभी ग्रन्थों का उल्लेख किया है । अतः हम उन श्लोकों को यहां उद्धृत करते हैं
'दिङ्मानं दर्शितं किन्तु सकलार्थविकशनम् । धैर्यावधेयं धीराः श्रीपद्मनाभनिवेदितम् ॥ उक्तो व्याकरणादर्शः सुपद्मस्तस्य पञ्जिका । ततो हि बालबोधाय प्रयोगाणां च दीपिका ॥ उणादिवृत्ति रचिता तथा च धातुकौमुदी । तथैव यङलुको वृत्तिः परिभाषाः ततः परम् ।। गोपालचरितं नाम साहित्ये ग्रन्थरत्नकम् । आनन्दलहरीटीका माघे काव्ये विनिर्मिता ।। छन्दोरत्नं छन्दसि च स्मृतावाचारचन्द्रिका ।
कोशे भूरिप्रयोगाख्यो रचिताततयत्नतः ॥ इति श्रीमत्पद्मनाभदत्तकृता परिभाषावृत्तिः सम्पूर्णा । इस परिभाषोवृत्ति का एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया आफिस के संग्रह में विद्यमान है । द्र०-सूचीपत्र भाग १,खण्ड २,ग्रन्थाङ्क८६०।
१. द्र०-हिस्ट्री प्राफ संस्कृत ग्रामर, सन्दर्भ ८५ ।