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परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३४१ परिमाण-प्रस्थकार ने न्यायसंग्ग्रह ग्रन्थ का परिमाण ६८ श्लोक १० अक्षर, न्यायार्थमञ्जूषा बृहद्वत्ति का ३०८५ श्लोक, और न्यास का १२०० श्लोक लिखा है। इसमें न्यायसंग्रह मौर बृहद्वत्ति का परिमाण प्रत्यक्षर गणनानुसार है, और न्यास का परिमाण आनुमानिक गणना पर आश्रित है।'
वैशिष्टय-परिभाषावृत्तियों में सीरदेवीय परिभाषावृत्ति के पश्चात् एकमात्र यही वृत्ति है, जो परिभाषाओं के विषय में पाण्डित्यपूर्ण और सविस्तर विवरण उपस्थित करती है।
३. विजयलावण्य सूरि (सं०. २०१०).. हैमबृहद्वृत्ति पर प्राचार्य -हेमचन्द्र- सूरि के शब्दमहार्णवन्यास १० अपर नाम बृहन्न्नास के समुद्धारक श्री विजयलावण्य मुनि ने हेमहंस गणि विरचित न्यायसंग्रह पर न्यायार्थसिन्धु नाम्नी व्याख्या और तरङ्ग नाम्नी टीका लिखी है । तरङ्ग टीका के अन्त में लेखन काल सं० २०१० निर्दिष्ट है। यह व्याख्या और टोका उनके द्वारा सम्पादित सिद्धहैमशब्दानुशासन के दूसरे भाग में प्रकाशित हुई है। .. १५ ___ ये दोनों ही व्याख्या प्रति प्रौढ़ हैं । सूरि महोदय को पाणिनीय तन्त्र का अच्छा ज्ञान हैं, यह इन व्याख्यानों से सुस्पष्ट है।
... १०-मुग्धबोध-संबद्ध वोपदेव-विरचित मुग्धबोष व्याकरण से सम्बद्ध एक परिभाषावृत्ति उपलब्ध होती है। इसमें व्याख्यायमान परिभाषाओं का संग्रा- २० हक कौन व्यक्ति है, यह अज्ञात है। ......
१. प्रत्यक्षरं गणेनिया ग्रन्थेऽस्मिन न्यायसंग्रहे। श्लोकानामष्टषष्टिः स्यादधिका च दशाक्षरी | पृष्ठ ६ । प्रत्यक्षरं गणनया ग्रन्येऽस्मिन् मानमगमन् । सहस्रनितमी पञ्चाशीतिः: श्लोकाश्च साधिकाः । पृष्ठ १५५ । अनुमानाद् गणनमा ग्यासमतमं विनिश्चित्तम् । सहस्री द्विशतीयुक्त; श्लोकानामत्र वर्तते । पृष्ठ २५ १६७।