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परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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परिचय-प्राचार्य हेमचन्द्र का परिचय इस ग्रन्थ के प्रथम भाग में 'प्राचार्य पाणिनि से अर्वाचीन वैयाकरण' नामक १७ वें अध्याय में लिख चुके हैं। परिभाषापाठ का पूरक-हेमहंसगणि (सं० १५१५ वि०)
हैम व्याकरण से सम्बद्ध ५७ परिभाषाओं के अतिरिक्त जो ५ परिभाषाएं उपलब्ध होती हैं, उनका संग्रह हेमहंसगणि ने किया है। वह न्यायसंग्रह में पूर्वनिर्दिष्ट ५७ हैम परिभाषाओं के अनन्तर लिखता है-तैरसमूच्चितास्त्वेते। इस प्रकार हेमहंसगणि ने ८४ अन्य परिभाषानों का संग्रह किया है। इन ८४ परिभाषाओं के भी दो भाग हैं। पहली ६५ परिभाषाएं व्यापक और ज्ञापकादि से युक्त १. हैं । इन से आगे जो १६ परिभाषाएं हैं, उन में कुछ अव्यापक है, और प्राय सभी ज्ञापकरहित हैं । इन १६ परिभाषाओं के भी दो भाग हैं। पहली १८ परिभाषाएं ऐसी हैं, जिन पर अल्प व्याख्या की ही पावश्यकता है। अन्तिम एक परिभाषा ऐसी है, जिस पर विस्तृत व्याख्यो को अपेक्षा है । हेमहंसगणि के शब्द इस प्रकार हैं
'इत्येते पञ्चषष्टिः, पूर्वेः (५७) सह द्वाविशं शतं न्याया व्यापका ज्ञापकादियुताश्च ।' न्यायसंग्रह पृष्ठ ५।
'प्रतः परं तु वक्ष्यन्ते ते केचिदव्यापकाः प्रायः सर्वे ज्ञापकादिरहिताश्च ।' न्यायसंग्रह पृष्ठ ५। 'एते अष्टादश न्यायाः "स्तोकस्तोकवक्तव्याः ।' न्यायसंग्रह पृष्ठ ६ । २०
'एकस्त्वयं बहुवक्तव्यः ।' न्यायसंग्रह पृष्ठ ६ । . परिचय-हेमहंसगणि ने स्वोपज्ञ न्यायार्थमञ्जूषा नाम्नी बृहद्वत्ति में अपना जो परिचय दिया है, तदनुसार श्री सोमसुन्दर सूरि हेमहंसगणि के दीक्षागुरु थे। और श्री मुनिसुन्दर सूरि, श्रीजयचन्द्र सूरि, श्री रत्नशेखर सूरि तथा श्री चारित्ररत्नगणि से विविध विषयों । का अध्ययन किया था। . काल-ग्रन्थकार ने स्वयं ग्रन्थ के अन्त में लेखनकाल सं० १५१५ ज्येष्ठ सुदी २ लिखा है। हेमहंसाणि विरचित षडावश्यक बाला