SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 363
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३८ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास व्याख्याकार इस परिभाषापाठ के वे ही व्याख्याकार हैं, जो सरस्वतीकण्ठाभरण के हैं। भोज और सरस्वतीकण्ठाभरण के व्याख्याकारों का निर्देश हम ५ प्रथम भाग में १७वें अध्याय में कर चुके हैं। परिभाषासंग्रह के सम्पादक पं० काशीनाथ अभ्यङ्कर ने भोजीय परिभाषासूत्रों को परिभाषासंग्रह में प्रकाशित किया है। ९-हेमचन्द्राचार्य (सं० ११४५-१२२९ वि०) आचार्य हेमचन्द्र ने अपने शब्दानुशासन से संबद्ध परिभाषापाठ १० का निर्धारण किया था। वह अत्यन्त संक्षिप्त था। इसमें प्रत्युप. योगी केवल ५७ परिभाषाएं ही पठित हैं। हैम व्याकरण में परिभाषाएं न्यायसूत्र नाम से व्यवहृत होती हैं। __ हैम-न्यायों के व्याख्याता हेमहंसगणि ने अपने मूल न्यायसंग्रह में ५७ न्यायों के निर्देश के अनन्तर लिखा है१५ एते न्याया: प्रभुश्रीहेमचन्द्राचायः स्वोपज्ञसंस्कृतशब्दानुशासन बृहद्वृत्तिप्रान्ते' समुच्चिताः। न्यायसंग्रह पृष्ठ ३। न्यायसमुच्चय के अर्वाचीन व्याख्याता विजयलावण्य सूरि कृत व्याख्या के प्रारम्भ में [ ] कोष्ठक में लिखा है समर्थः पदविधिः ७।४।१२२ इति सूत्रस्य बृहद्वृत्तिप्रान्ते हेम२० चन्द्रसूरिभगवद्भिरक्ताः । सिद्धहेमशब्दानुशासन, भाग २, के अन्तर्गत न्यायसमुच्चय पृष्ठ १। इन अवतरणों से स्पष्ट है कि हेमचन्द्राचार्य प्रोक्त ५७ ही परिभाषाएं अथवा न्याय हैं। १. प्रान्ते' का अर्थ है 'सर्वान्ते'। अर्थात् बृहद्वनि के पूर्ण होने के २५ अनन्तर।
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy