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परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता
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इससे स्पष्ट है कि पं० काशीनाथ अभ्यङ्कर ने महावृत्ति आदि में उद्धृत जैनेन्द्र तन्त्र-संबद्ध परिभाषाओं को संगृहीत करके उन पर शक १६८० (सं० २०१५) में वृत्ति लिखी है।
इस परिभाषा पाठ का मूल प्रवक्ता कौन था, यह अज्ञात है।
७-शाकटायन तन्त्र-संबद्ध पाल्यकीति विरचित शाकटायन व्याकरण से संबद्ध एक परिभाषापाठ का प्रकाशन भी पं० काशीनाथ अभ्यंकर ने परिभाषासंग्रह में किया है । इसके लिए उन्होंने दो हस्तलेख वर्ते हैं। इस परिभाषापाठ का एक हस्तलेख लन्दन के इण्डिया आफिस के संग्रह में भी हैं। द्र०-सूची० भाग १, खण्ड २, सं० ५०३५ ।
प्रवक्ता-इस परिभाषापाठ का प्रवक्ता पाल्यकीर्ति ही है, क्योंकि उसकी अमोघा वृत्ति में ये परिभाषाएं बहुत्र उद्धृत हैं।
विशेष विचारणीय-इस परिभाषापाठ की ३७ वीं परिभाषा है-स्वरविधौ व्यञ्जनमविद्यमानवत् । यह परिभाषा पं० अभ्यङ्कर द्वारा समासादित दोनों हस्तलेखों में है। पाल्यकीति ने अपने व्या- १५ करण में स्वर-शास्त्र का विधान ही नहीं किया। विधान करना तो दूर रहा, उसने पाणिनि द्वारा स्वरविशेष के ज्ञापन के लिए विभिन्न अनुबन्धों से युक्त प्रत्ययों का एकीकरण करके अपने स्वरनरपेक्ष्य को स्थान-स्थान पर धोतित किया है । ऐसी अवस्था में उसके परिभाषापाठ में स्वरविषयक परिभाषा का होना एक आश्चर्यजनक घटना है। २० - व्याख्या-इस परिभाषापाठ पर कोई व्याख्या ग्रन्थ उपलब्ध नहीं होता।
--- ४-श्रीभोजदेव (सं० १०७५-१११० वि०) श्रीभोजदेव ने स्वीय व्याकरण से संबद्ध परिभाषापाठ को गणपाठ और उणादिपाठ के समान ही शब्दानुशासन में पढ़े दिया है। यह सरस्वतीकण्ठाभरण में ११२।१८ से १३५ तक पठित है।