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________________ ३३६ संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास प्रथम भाग में प्रथम वार यह प्रमाणित किया है कि चान्द्र व्याकरण में स्वर प्रकरण था । इसकी पुष्टि में हमने चान्द्रवृत्ति से सात प्रमाण उद्धत किए हैं। छठे प्रमाण से स्पष्ट व्यक्त होता है कि स्वर-प्रकरण चान्द्र-व्याकरण के आठवें अध्याय में था । इस समय इसके छ: अध्याय ५ ही उपलब्ध हैं । अतः यदि ये परिभाषासूत्र स्वयं चन्द्रगोमी के न होकर किसी उत्तरवर्ती वैयाकरण के होते, तो चान्द्र-व्याकरण की स्वरसंवन्धी अप्रसिद्धि के कारण स्वरशास्त्र से संबन्ध रखनेवाली ८६ वीं परिभाषा का निर्देश इस परिभाषा में न मिलता। ____ इस परिभाषापाठ पर कोई वृत्ति उपलब्ध वा ज्ञात नहीं है । ___६-जैनेन्द्र संबद्ध देवनन्दी प्रोक्त शब्दानुशासन से संबद्ध जैनेन्द्र-परिभाषा का न कोई स्वतन्त्रपाठ उपलब्ध है, और न कोई वृत्तिग्रन्थ । हां, अभयनन्दी विरचित महावृत्ति में अनेक परिभाषाएं यत्र-तत्र उदधृत हैं । परि. भाषासंग्रह के सम्पादक पं० काशोनाथ अभ्यङ्कर ने लिखा है 'ग्रन्थं नागेशभट्टानां परिभाषेन्दुशेखरम् । सम्पादयितुकामेन नानाव्याकरणस्थिताः ॥१॥ वृत्तयः परिभाषाणां तथा पाठा विलोकिताः । तासां च संग्रहं कुर्वन् जैनेन्द्रे नोपलब्धवान् ॥२॥ पाठं परिभाषाणां वृति वा संग्रहं तथा। काश्चित्तत्र मया दृष्टा वृत्तावभयनन्दिनाम् ॥३॥ उपयुक्तास्तत्र तत्र सूत्रार्थप्रतिपादने। तासां तु संग्रहं कृत्वाऽलेखि पाठः सवृत्तिकः ॥४॥ खदिग्दिग्भू (१८८०) मिते शाके वत्सरे रचितो मया। माघे कृष्णे पुण्यपुर्यां प्रारब्धः प्रतिपत्तिथौ ॥५॥ दशम्यां सुसमाप्तोऽयं ग्रन्थः प्रत्यर्पितो मया । गुरुभ्यः ख्यातनामभ्य: प्रणतिप्रतिपूर्वकम् ॥६॥' १. द्र०-संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास भाग १,१७ वें अध्याय में चान्द्र व्याकरण प्रकरण .
SR No.002283
Book TitleSanskrit Vyakaran Shastra ka Itihas 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYudhishthir Mimansak
PublisherYudhishthir Mimansak
Publication Year1985
Total Pages522
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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