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परिभाषा-पाठ के प्रवक्ता और व्याख्याता ३३५ शित हुई है। भावमिश्र ने अपना कोई परिचय इस वृत्ति में नहीं दिया। भावमिश्र ने वृत्ति के प्रारम्भ में प्रकीर्णकार विद्यानन्द नामक किसी कातन्त्रीय वैयाकरण का उल्लेख किया है-प्रकीर्णके विद्यानन्देन कारिकयोक्तम् ... परिभाषा संग्रह, पृष्ठ ६७ ।
यदि प्रकीर्ण से.कातन्त्रोत्तर का अभिप्राय होवे तो यह विद्यानन्द ५ . विजयानन्द जिसका दूसरा नाम विद्यानन्द भी है, वह हो सकता है। यह कल्पनामात्र है।
५. माधवदास कविचन्द्र भिषक् किसी माधवदास कविचन्द्रभिषक ने कातन्त्रीय परिभाषानों पर . एक वृत्ति लिखी थी। इसका निर्देश कविकण्ठहार ने 'चर्करीतरहस्य' १० के द्वितीय श्लोक में इस प्रकार किया है
परिभाषाटीकायां माधवदास कविचन्द्र भिषजा यत् ।' इसके .. कालादि के सम्बन्ध में भी हम नहीं जानते।
कातन्त्र परिभाषाओं के व्याख्याकारों के विषय में इससे अधिक हम कुछ नहीं जानते।
५. चन्द्रगोमी (१००० वि० पूर्व) चन्द्रगोमी प्रोक्त परिभाषापाठ पं० काशीनाथ अभ्यङ्कर ने परिभाषासंग्रह में प्रकाशित किया है । इस पाठ में ३ परिभाषाएं हैं।
चन्द्रगोमी के काल आदि के विषय में हम प्रथम भाग (पृष्ठ ३६८-३७१, च० सं०) में लिख चुके हैं।
प्रवक्ता-इस परिभाषापाठ का प्रवक्ता चन्द्रगोमी ही है, अन्य कोई चान्द्र सम्प्रदाय का वैयाकरण नहीं है। यह इस परिभाषापाठ की ८६ वीं परिभाषा-स्वरविधी व्यञ्जनमविद्यमानवत से स्पष्ट है । क्योंकि चान्द्र व्याकरण के विषय में वैयाकरणों में चिरकाल से यह प्रवाद दृढमूल है कि चान्द्र-व्याकरण केवल लौकिक भाषा का २५ व्याकरण है। इसमें स्वर वैदिक प्रकरण नहीं था। हमने इस ग्रन्थ के
१. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ ४४,४५।
१.कातन या
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