________________
३३४
संस्कृत व्याकरण-शास्त्र का इतिहास
काशोनाथ अभ्यङ्कर ने इस वृत्ति का काल ६ वीं शती ई० लिखा है। तदनुसार यह दुर्गसिंह कातन्त्र वृत्ति का टीकाकार होना चाहिये। परन्तु लिङ्गानुशासन का प्रवक्ता और व्याख्याता भी प्रथम दुर्गसिंह
है, यह हम 'लिङ्गानुशासन के प्रवक्ता और व्याख्याता' प्रकरण में ५ लिख चुके हैं। अतः हमारे विचारानुसार वृत्तिकार दुर्गसिंह होना चाहिये।
टोकाकार-मदन मदन नाम के किसी व्यक्ति ने दुर्गसिंह की वृत्ति पर टीका लिखो - है। वह लिखता है
श्रीमता मदनेनेयं कातन्त्राम्बुजभास्वता। . बोधाय परिभाषाणां वृत्तौ टीका विरच्यते ॥'
इसने भावमिश्र व्याख्यात ६२ परिभाषायों की चर्चा की है अतः सम्भव है यह टीकाकार भावमिश्र से उत्तर कालीन होवे।
इससे अधिक हम इसके विषय में नहीं जानते । १५
३. कवीन्दु जयदेव कवीन्दु जयदेव ने भी कातन्त्रीय परिभाषापाठ की व्याख्या लिखी है । इसका हस्तलेख भुवनेश्वर में है । उसने यह ग्रन्थ प्रताप रुद्र नगर की यात्रा के प्रसङ्ग में लिखा थी। वह ग्रन्थ के अन्त में लिखता है
प्रताप रुद्रीयपूरं गच्छता कार्यहेतवे। . कवीन्दुजयदेवेन परिभाषाः समापिताः ॥'
कवीन्दु जयदेव का काल अज्ञात है। इसने ५५ परिभाषानों पर ही व्याख्या लिखी है । अतः यह भाव मिश्र से प्राचीन है ऐसा हमारा विचार है।
४. भावमिश्र भावमिश्र कृत कातन्त्र-परिभाषावृत्ति परिभाषा-संग्रह में प्रका
१. कातन्त्र व्याकरण विमर्श, पृष्ठ १९६ । २. कातन्त्र व्याकरणः विमर्श, पृष्ठ १९५।