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शब्दों के धातुजत्व और धातु के स्वरूप पर विचार ११ इस प्रकार यदृच्छाशब्दों को संस्कृत भाषा का अङ्ग स्वीकार न करने पर नाम शब्दों में यौगिक और योगरूढ दो ही प्रकार अवशिष्ट रहते हैं। क्योंकि संस्कृत भाषा में यदृच्छाशब्दों के अतिरिक्त कोई भी शब्द मूलतः रूढ नहीं है (यह हम अनुपद ही दर्शायेंगे)। ___ सम्पूर्ण शब्दों का यौगिकत्व-अति प्राचीन काल में न केवल नाम ५ शब्द, अपितु अव्यय (स्वरादि+निपात) भी यौगिक अर्थात् धातुज ही माने जाते थे। इस परम्परा के प्रायः उत्पन्न हो जाने पर भी निरुक्त और उणादिसूत्रों के प्रवक्ता प्राचार्यों तथा वेदभाष्यकारों ने अनेक अव्ययों की धातु से व्युत्पत्ति दर्शाई है । यथा
अच्छ-अभेराप्तुमिति शाकपूणिः। निरुक्त ५।२८। स्वाहा-इत्येतत् सु आहेति वा स्वा वागाहेति वा स्वयं प्राहेति वा
स्वाहुतं हविर्जुहोतीति वा । निरुक्त ८।२०।। पृथक्-प्रथे: कित् संप्रसारणं च । उणादि १।१३७।। समया-निकषा-प्राः समिनिकषिभ्याम् । उणादि ४।१७५॥ वाट=वहन्ति सुखानि यया क्रियया सा । वाट निपातोऽयम् ।
दयानन्दीय यजुवंदभाष्य २॥१८॥ काशकृत्स्न धातुपाठ की कन्नड टीका में बहुत से अव्ययों का धातुजत्व दर्शाया है।
इस प्रकार इन प्राचार्यों ने उत्सन्न हुई प्राचीन परम्परा की ओर संकेत करके उसे पुनरुज्जीवित करने का प्रयत्न किया है। २०
वैयाकरणों में हेमवन्द्राचार्य ने अपनी बृहद्वृत्ति के स्वोपज्ञ महान्यास में अनेक अव्ययों और निपातों का धातुजत्व दर्शाया है ।
यौगिकत्व से रूढत्व की अोर गति--यह सर्वतन्त्र सिद्धान्त है कि जिन शब्दों में धात्वर्थ का अनुगमन प्रतीत होता है, वे यौगिक माने जाते हैं। जिनमें धात्वर्थ अनुगमन प्रतीत होने पर भी किसी अर्थ विशेष २५
कल्पनं संज्ञादिषु साधु मन्यन्ते । ....... अपर आह—न्याय्य ऋतकशब्दः शास्त्रान्वितोऽस्ति । स एव कल्पयितव्यः साधुः संज्ञा दिषु ............। ऋलक (प्रत्या० २) सूत्रभाष्य ।